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अभावितथी नहीं; केमके अभावित नवं नाव जळमां नाखतां घणा जीवोनी हिंसा थाय. भावित नाव जळमां वारंवार गति करेल होवाथी नवीन विराधना थती नथी. तेना पाटिया, पाथडा विगेरे रूढ थई गयेल होय छे, परन्तु नवा नावने जळनो संसर्ग थतां घणी ज विराधना थाय छे. भावित नावना पण बे प्रकार छे ते ज जळमां भावित थयेल अने अन्य जळमां भावित थयेल. जे ते ज जळमां भावित होय तेवां नाव द्वारा उरतवू श्रेष्ठ छे, कारण के एक जल बीजा जळने माटे शस्त्ररूप छे. आपणामां पण प्रचलित रिवाज छे के-एक कूवा या तो वावनो संखारो ते ज कूवा या तो वावमां नाखवो. जो भूलथी पण अन्य स्थळे नाखवामां आवे छे तो ते अप्कायना जीवोनी हिंसा थाय छे. मीठा कूवानुं पाणी खारा कूवाना जळमां नथी नाखवामां आवतुं तेमां पण आ ज हेतु समायेलो छे. आ प्रमाणे दर्शावेल भावित नावना पण बे प्रकार समजवा - (१) सूकायेली अने (२) आर्द्र. तेमां सूकी भावित नावथी न उतरवू, कारण के तेने जळमां प्रवेश करावतां ज ते जळ चूसबा मांडे छे अने ए रीते अप्कायना जीवोनी विराधना थाय छे, माटे आर्द्र भावित नावतो ज उपयोग करवो; अने ते प्रमाणे करतां जयणानो पूरेपूरो उपयोग राखवो.
पिंडी सुधी जळ होय अने तेमां उतरे तेनो संघट्ट कहेवाय, नाभि सुधी जळ ऊंडं होय ते लेप कहेवाय अने नाभि उपरांत जळ होय अने तेमां उतरे तो लेपोपरि जाणवू. संघट्टामां केवी रीते उतरवू ते जणावतां कहे छे के-एक पग जळमां मकवो अने एक पग अधर (आकाशमा) राखवो-ए प्रमाणे जयणापूर्वक उतरवू; परन्तु जळy डोळाण न करवू कांठे आवतां पग ऊपरनुं पाणी नीतरवा देवू. पाणी सर्व सुकाई जाय त्यारबाद कांठे इरियावहिया पडिक्कमे अने कायोत्सर्ग करे. आ संघट्टानी जयणा जाणवी.
लेप प्रमाण- जळ उतरवानो विधि दर्शावे छे-जो चोरादिकनो भय न होय तो जे रस्ते गृहस्थ उतर्या होय ते मार्गे नदी उतरवी अने जेम जेम जळमां आगळ वधाय तेम तेम विशेष ऊंडु जळ एटले चोळपट्टो ऊंचो ऊंचो करवो. चोळपट्टो ऊंचो लेवाथी अप्कायना घणा जीवोनो विनाश अटकी जाय छे, कारण के चोळपट्टो भीजावाथी घणा अप्कायना जीवोनी विराधना थाय. चौरादिकनो भय होय अने बीजा गृहस्थनो योग होय त्यारे गृहस्थ जळमां अडधा पर्यन्त पहोंचे त्यारे पोतानो चोळपट्टो बांधीने जळमां उतरे अने ते प्रमाणे उतरतां चोळपट्टो भीनो थाय तो जयणापूर्वक वर्ते. नदीना कांठा ऊपर आवीने ऊभा रहेQ अने ज्यां सुधी चोलपट्टानुं जळ नीतरी न जाय त्यां सुधी कांठा ऊपर ऊभा रहेवं. जो भय होय तो चोळपट्टो लांबो करीने एटले के-हाथमां लांबो करीने जाय अथवा दांडा ऊपर राखीने जाय, पण ते भीना चोळपट्टाने पोताना शरीर साथे स्पर्श न करावे. जो गृहस्थ साथे न होय तो आ विधि प्रमाणे वर्तवं. परन्तु गृहस्थ होय तो केम करवू ते पण दर्शावतां कहे छे के-जे स्थळे बीजा वटेमागें उतरतां जणाय ते स्थळेथी उतरवू, अने कोई पण वटेमा न होय तो जे स्थळेथी पूर्वे लोको गया होय तेवी पगदंडी जोवी अने पोताना देहप्रमाण करतां चार आंगळ अधिक दंड होय तेने “नालिया" कहे छे ते नालिया ग्रहण करीने जळनुं प्रमाण
श्रीगच्छाचार-पयन्ना-३०३