Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 319
________________ तपासतां तपासतां नदी उतरवी. नालिया पासे न होय तो अन्य तरवावाळानी राह जोवी. आ लेप प्रमाण जळ उतरवानी विधि दर्शावी. हवे अथाह-अथाग पाणी उतरवानी विधि कहे छे, तेमां नाव संबंधी हकीकत आ विवेचनमां पूर्वे जणादी दीधी छे. हवे नावम कई रीते बेसबुं ते जणावतां कहे छे के-सर्व पात्रादिक उपकरण एकत्र करीने बांधवा, पछी छीकामां ऊंधे मुखे राखीए तेम राखवा. केटलाक आचार्यों आ संबंधमां एम पण जणावे छे के-भंडोपकरणने पडिलेहीने, मस्तकथी ते पग पर्यन्त शरीरनी प्रतिलेखना करीने नावमां बेसवं. नावमां पण आगळ न बेसवु केम के तेथी प्रवर्तन दोष एटले नाव चालवानो दोष लागे. नावना पाछळना भागमां पण न बेसवू कारण के अतिशय जळप्रमाणने कारणे भय उपस्थित थाय; माटे नावना मध्यभागमा ज बेसवू. तेमां पण त्रण स्थान-१ देवस्थान, २ कूपस्थान अने ३ निर्यामकस्थान वर्जीने बेसवू. नावनो अग्रभाग ते देवस्थान, मध्यमां वनस्थान अने पाछळ तोरणस्थान-आ त्रण जग्या पण वर्जवी. जे स्थळे अन्य कोई न बेसे ते स्थळे उपयोगपूर्वक, नवकारमंत्र- स्मरण करीने बेसवं. सागारिक पच्चक्खाण पण करवू के-जो कई पण उपद्रव थाय अने काळधर्म पमाय तो मारे सर्वस्वनो त्याग छे. नाव जळमार्ग पसार करीने कांठे आवे त्यारे पण सौ प्रथम आगळना भागे न उतरे तेमज पाछलना भागे पण न उतरे; जेम मध्य भागमां बेसे तेवी ज रीते मध्य भागे उतरे. पछी कांठे उतरीने इरियावही पडिक्कमी कायोत्सर्ग को. जळनो संघट्ट न थयो होय तो पण आ प्रमाणे विधि करवी ज. दत्ती, उडुप अने तुंब विगेरेनो विधि पण आज प्रमाणे जाणवो. विशेष ए के-तेने मूकीने पछी इरियावहियादि क्रिया करवी. आ प्रमाणे नावद्वार जाणवू. हवे विहार संबंधी वर्णन जणावे छे. श्रीनिशीथसूत्रना दशमां उद्देशानी चूर्णिमां का छे के ऊणाइरित्तमासे, अट्ठ विहरिऊण गिम्हहेमंते। एगाहं पंचाहं, मासं च जहा समाहीए ॥१॥ काऊण मासकप्पं, तत्येव उवागयाण जयणाए। चिक्खल्लवासरोहेण, वा वि तेण ट्ठिया ऊणा ॥ २॥ वासाखित्तालंभे, अद्धाणाईसु पत्तमहिगाओ। साहगव्वाधाएणं, अपडिक्कमिउं जइ वयंति ।।३।। पडिमा पडिवण्णाणं, एगाहं पंचहो तहा लंदे । जिणसुद्धाणं मासो, निक्कारणओ य थेराणं ॥४॥ ऊणाइरित्तमासा, एवं थेराण अट्ठ नायव्वा। इयरे अट्ठ विहरिचं नियमा चत्तारि अच्छन्ति ॥५॥ चार मास हेमंत ऋतुना एटले शियाळाना अने चार मास ग्रीष्म ऋतुना एटले उनाळाना आ आठ मास दरमियान ओछो या अधिको विहार को होय. केवी रीते विहार करवो? ते संबंधे जणावतां कहे छे के-प्रतिमाधारीए विहार करता करतां आ आठ मास दरमियान गाम या नगरमां एक अहोरात्रि स्थिर रहेवू. यथालंदक कल्पवाळा साधुओ एक स्थळे पांच अहोरात्रि रहे १. • श्रीगच्छाचार-पयन्ना- ३०४

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