Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 323
________________ पडयु. तेणे राजाना कान भंभेरवा मांडया के-आलोको तो पाखंडी छे, वेद धर्मने मानता नथी. तेमना आचार विचारमा कशुं ठेकाणुं नथी. तेमनुं धर्माचरण तो धतींग छे. राजाए परस्पर वाद-विवाद गोठव्यो अने सूर्य समीप जेम आगियो (खद्योत) झांखो थई जाय तेम पुरोहितजी हारी गया. पुरोहितजीनो पराजय थयो पण तेमणे पोताना मनमांथी डंख न मूक्यो. तेणे राजाना कान भंभेरवा शरू ज राख्या. एकदा तेणे का के- हे राजन् ! जे मार्गे आ साधुओ चाले छे ते मार्गे चालवाथी राजा के सैन्यनो नाश थाय छे. काँचा कानना राजवीए आ हकीकत साची मानी लीधी अने आचार्यने नगरी बहार काढी मूक्या. केटलाको कहे छे के-आचार्य समर्थ तेम ज पोताना गृहस्थावस्थाना मामा होवाथी तेमने सीधी रीते चाल्या जवानो आदेश तो न आप्यो, पण समस्त नगरीमां सूझतो आहार न मळे तेवो प्रबन्ध कराव्यो जेथी आचार्यश्री कंटाळीने अन्यत्र विहार करी गया. विहार करीने तेओ प्रतिष्ठान नगरे गया. त्यांना लोकोने गाउथी कहेवराव्यु के-हं आव्या पछी पर्युषण करजो. त्यांनो राजा शालिवाहन जैनधर्मी हतो. तेने कालकाचार्यने आवतां जाणी अत्यंत हर्ष प्रदर्शित कर्यो अने महोत्सव तेमज आडंबरपूर्वक गुरूने प्रवेश कराव्यो. गुरुएं फरमाव्यु के-भादरवा शुदि पांचमने दिवसे पर्युषणपर्व करवानुं छे. ते समये राजाए विज्ञप्ति करी के-मारी प्रजाना आग्रहथी ते दिवसे मारे इन्द्र महोत्सव करवानो छे, तेथी हुं साधुवंदन अने चैत्यपरिपाटी करी शकुं नही तो आप छठ्ठनी पर्युषण करावो. गुरूमहाराजे जणाव्यु के-भादरवा शुदि पांचम ओळंगवी नहीं तेवी शास्त्रज्ञा छे. राजाए पुन: विनति करी के-तो चोथर्नु पर्व राखो. गुरूए ते कबूल कर्यु, श्रीकालकाचार्य युगप्रधान होवाथी तेमणे प्रवर्तावेल चतुर्थी सौए कबूल राखी अने ते प्रमाणे हालमां पण चतुर्थीए ज पर्युषणपर्वनी आराधना कराय छे. __ शालिवाहन राजाए पोतानी सर्व राणीओने आदेश आप्यो के-तमे सर्व अमावसनो उपवास करो अने प्रतिपदाने दिवसे (भादरबा शुदि १ ने दिवसे) साधुओने वहोरावीने, पारणुं करावीने पछी करजो. बाद बीज, त्रीज ने चोथ-ए त्रण दिवस- तेलाधर पर्व करजो. राणीओए राजानी आज्ञानुं पालन कर्यु अने प्रतिप्रदाने दिवसे साधुओने भक्तिपूर्वक पारणा कराव्या ते दिवसथी ते प्रदेशमा “साधुपूजा” - पर्व प्रवत्युं छे. हवे पांच-पांच दिवसनी हानि केवी रीते करवी ते संबंधी काळ अवग्रह एटले रहेवा- प्रमाण दर्शावे छे. इय सत्तरी जहन्ना, असीइनउईदसुत्तरसयं च। जइ वासइ मग्गसिरे, दस राया तिण्णि उक्कोसो ॥११॥ काऊण मासकप्पं, तत्थेव ठियाण जाव मग्गसिरो। सालंबणाण छम्मा-सिओ उ जिट्ठग्गहो होइ ।।१२।। जड़ अस्थि पयविहारो, चउपाडिवयंमि होइ निग्गमाणम्। अहवावि अणिताणं, आरोवणपुव्वनिद्दिठ्ठा ।। १३ ॥ श्रीगच्छाचार–पयन्ना-३०८

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