Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani
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उपसंहारआ गच्छाचार प्रकीर्णक कया कया सूत्र-सिद्धांतमाथी उद्धरेल छे ते दर्शावतां ग्रन्थकार कहे छे के:
महानिसीहकप्पाओ, ववहाराओ तहेव य। साहु साहुणि अट्ठाए, गच्छायारं समुट्ठिओ ।। १३५ ।। पढंतु साहुणो एयं, असज्झायं विवज्जिउं। उत्तमं सुअनिस्संदं, गच्छायारं सुउत्तमम् ।। १३६ ।। गच्छायारं सुणित्ताणं, पठित्ता भिक्खुभिक्खुणी। कुणंतु जं कहा भणियं. इच्छन्ता हियमप्पणो॥ १३७ ।। [महानिशीथकल्पात्, व्यवहारात् तथैव च। साधुसाध्वीनामर्थाय, गच्छाचारः समुद्भुतः ।। १३५ ।। पठन्तु साधव एतद् अस्वाध्यायिकं विवर्ण । उत्तमं श्रुतनिस्यन्दम्, गच्छाचारं सूत्तमम् ॥१३६ ॥ गच्छाचारं श्रुत्वा, पठित्वा भिक्षवः भिक्षुण्यः ।
कुर्वन्तु यद्यथा भणितं, इच्छन्तो हितमात्मनः ॥ १३७॥] गाथार्थ--श्रीमहानिशीथ, श्रीबृहत्कल्प अने व्यवहारभाष्यमांथी तेमज निशीथादिक(छेद) सूत्रोमांथी साधु-साध्वीओने माटे आ गच्छाचार प्रकीर्णक उद्धृत करेल छे.
श्रीस्थानांगसूत्रमा दर्शावेल दश प्रकारनी असज्झाय वर्जीने महानिशीथ, बृहत्कल्पादिक प्रधान श्रुतना निचोडरूप-तत्त्वसाररूप आ गच्छाचार पयन्नानुं साधु तेमज साध्वीओए भणq गणवू तथा परिशीलन सुविचार पूर्वक करवू.
श्रेष्ठ साधु-साध्वीओनी मर्यादारूप आ गच्छाचार पयन्ना सद्गुरू पासे अर्थरूपे सांभळी तेमज योगोद्वहनरूप विधिवडे सूत्ररूपे ग्रहण करी आत्मानुं कल्याण इच्छनारा साधु-साध्वीओए जेम आ गच्छाचार पयन्नामां वर्णव्युं छे तेवू समाचारण करवू. . विवेचन-आ गच्छाचारपयन्नो श्रीमहानिशीथ, बृहत्कल्प अने व्यवहारभाष्य जेवा प्रमाणभूत सूत्रोमांथी उद्धरीने बनावेल छे. एटले ते प्रमाणिक अंने माननीय छे. वळी प्रकीर्णकोनी रचना प्रत्येकबुद्ध मुनिवर के तीर्थंकर भगवंतना विशिष्ट शिष्यद्वारा थाय छे एटले पण प्रकीर्णकोनी समुद्धरता स्वयमेव ज साबित थई जाय छे.
आवा पयन्नानु पठनपाठन-परिशीलन अस्वाध्याय वर्जीने करवू. श्रीस्थानांगसूत्रना दशमा स्थानकमां दश प्रकारनी असल्झायो नीचे प्रमाणे जणावी छे-दसविहे अंतलिक्खिए असज्झाइए पन्नत्ते तं जहा-उक्कावाए १, दिसिदाहे २, गज्जिए ३, विज्जुए ४ निग्धाए ५५, जुवए ६, जक्खालित्तए, ७, धूमिआ ८, महिआ ९, रयउग्घाए १०, आकाशथी दश प्रकारनी असज्झाय
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- ३१२

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