Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

View full book text
Previous | Next

Page 326
________________ अने वचनगुप्तिनो यथार्थ मर्म समजनार कदापि धर्मोपदेश सिवाय अन्य कुथली (निंदा) न करे. श्री वंदित्तासूत्रनी छेतालीशमी गाथामां पण एज भाव भयों छे के- चिरसंचियपावपणासीइ, भवसयसहस्समहणीए। चउवीसजिणविणिग्गयकहाई वोलंतु मे दिअहा।। ४६ ।। अर्थात् अनेक भवमां उपार्जन करेला पापराशिने नष्ट करनारी, लाखो भवोनो अंत करनारी एवी चौवीश तीर्थंकर परमात्मानी कथा करवावडे करीने मारो दिवस व्यतीत थाओ ! आवो अतुल लाभ आपनार धर्मकथा छोडीने साध्वीए अन्य विकथामां शा माटे आसक्त थर्बु घटे? मासखमण-मासखमणनी उग्र तपश्चर्या करनारी अने पारणाने दिवसे मात्र एक दाणो रूक्ष आहार करनारी साध्वी पण जो भाषासमिति न जाळवे. गृहस्थ योग्य सावध भाषा बोले, पारकाना मर्म प्रकाशे, अन्यने आल आपे, कोईना पर क्रोधित बनी श्राप आपे तो शास्त्रकार कहे छे के तेवी साध्वीनी तीव्र तपश्चर्या निरर्थक जाणवी. कां छे के–“क्रोधे क्रोड पूरवतणुं, संयमनो फळ जाय। मात्र क्रोधना अवलंबनथी कौशिक तापस मरीने चंडकौशिक सर्प थयो अने पूर्वभवना तीव्र संस्कारने कारणे दृष्टिविषद्वारा अनेकना प्राणो हरवा लाग्यो. आ माटे ज शास्त्रकार कहे छे के साध्वीए कदापि क्रोधावेशमां आवीने गृहस्थोचित सावध भाषा बोलवी नहीं। श्रीगच्छाचार-पयन्ना-३११

Loading...

Page Navigation
1 ... 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336