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उत्पन्न थाय छे. १ उल्कापात-तारानुं खरवुं विगेरे, २ दिशिदाह- कोईएक दिशामा कोई महानगर बळे तेनो आकाशमां जे उद्योत थाय ते, ३ गर्जता - अकाळे मेघनी गर्जना थाय, ४ विद्युत - अकाळे आकाशमां विजळी थाय, ५ निर्घात वादळयुक्त के वादळ रहित आकाशमां व्यंतरदेवोनो करेलो महाध्वनि, ६ जुवक चन्द्रमानी प्रभा अने संध्यानी प्रभा ए बने साथे थई जाय, एटले मिश्र थइ जाय. चन्द्रनी प्रभाथी ढंकायेल संध्या ज्यां सुधी जाणवामां न आवे त्यां सुधी शुक्ल प्रतिपदादिकमां संध्यानो छेद जाणतां छतां काळ न जणाय माटे त्रण दिवस प्रादोषिक काळ ग्रहण न करवो, पछी कालिक सूत्रनो स्वाध्याय न थाय, ७ यक्षादीप्तं - आकाशमां यक्षदीप्त थाय एटले उजाश थई जाय, ते समये स्वाध्याय करे तो क्षुद्र देव छळवा आवे, ८ धूमिका - महिकानो भेद, ते वर्णथी धूम्रवर्णादि छे, ९ महिका-झीणो वरसाद, १० रजघात विस्त्रसा परिणाम थी चारे दिशामां धूळ वरसवा मांडे.
बीजी रीते पण दश प्रकारनी असज्झाय कही छे, ते आ प्रमाणे - दसविहे ओरालिए असज्झाइए पन्नत्ते तं जहा-अट्ठी १ से २ सोणिए ३ असुइ सामंते ४ सुसाणसामंते ५ चंदोवरा ६ सूरोवराए ७ पडणे ८ रायवुग्गहे ९ उवस्सयस्स अंतो उरालिए सरीरे १० । औदारिक शरीर असज्झाय दश प्रकारनी छे. १ ३ अट्ठि एटले हाडकां मंसे एटले मांस, शोणिए एटले रुधिरलोही अने चर्म विगेरे, औदारिक शरीरना आ चारे पदार्थो साठ हाथनी अंदर पडया होय तो जे काळमां पड्था होय त्यारथी त्रण पहोरनी असज्झाय. बिलाडीए उंदर प्रमुख मार्या होय तो एक अहोरात्री असज्झाय. आ तिर्यंचना हाड-मांसनी मापक मनुष्यना हाड-मांस विगेरेनी असज्झाय जाणी लेवी. जो मनुष्यादिकना हाड-मांस सो हाथनी अंदर पड्या होय तो जे काळे पड्या होय त्यारथी अहोरात्रिनी असज्झाय जाणवी. स्त्रीना ऋतुकाळनी त्रण दिवसनी असज्झाय, पुत्रजन्मनी सात दिवसनी, पुत्रीजन्मनी आठ दिवसनी भूमिमां दाटेला प्राणीनी पण असज्झाय जाणवी. ४ अशुचि- स्थंडिल तथा मातरुं प्रमुख नजीक होय तो असज्झाय, ५ श्मशानसमीपम् श्मशान अर्थात् मशाण पासे बेसी स्वाध्याय न करवो. ६-७ चन्द्र के सूर्यनुं ग्रहण होय तो असज्झाय. जो चन्द्र अने सूर्यग्रहणावस्था अस्त थाय तो ते रात्रि के दिवस पछी अहोरात्रिनो त्याग करवो अने जो ग्रहण थया बाद चन्द्र या सूर्यनो उदय थाय तो चन्द्र संबंधी ते रात्रिनो काळ अने सूर्यनो ते दिवस तेमज रात्रि संबंधी काळ पर्यन्त असज्झाय जाणवी. सूर्य तेमज चन्द्रने औदारिकमां गणवानो हेतु एछे के-ते ओना विमान औदारिक छे. ८ पतन-मरण, नगरमां राजा, प्रधान, सेनापति के कोटवाळ विगेरेनुं मृत्यु थयुं होय तो तेने स्थाने बीजो न बेसे त्यां सुधी अस्वाध्याय जाणवी. निर्भय थया पछी पण अहोरात्रि वर्जवी. गामनो नगर शेठ के बहु कुटुम्बनो धनी, शय्यातर के सात घरने आंतरे कोई मृत्यु थाय तो एक अहोरात्रिनी असज्झाय जाणवी. कदाचने स्वाध्याय करवी ज होय तो गुप्त रीते करे. जो मन करे तो लोकोमां निंदा थाय के-आ लोको केवा निर्दय छे. कोईनी पीडा पण समजता नथी विगेरे ९ राजविग्रह - राजानो संग्राम होय, सेनापति विगेरे मोटा माणसोनी लडाई होय, तथा नजीकमां कोई स्त्री-पुरुष लडता होय, सुभट-सुभट वच्चे झगडो थयो होय तो अस्नाध्याय कारण के तेमां देवने छळवानो भय रहेलो छे. १० उपाश्रयमां मनुष्यादिकना, शरीरनुं छेदन- भेदन थयुं होय
श्रीगच्छाचार - पयन्ना— ३१३