Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

View full book text
Previous | Next

Page 329
________________ तो १०० हाथ सुधीमां असज्झाय अने कदाच छेदन-भेदन न कर्यु होय परन्तु इंगछितपणाथी १०० हाथ सुधीमां होय तो पण असज्झाय जाणवी. तेने दूर मूकी आवे अने स्थानशुद्धि करे तो असज्झाय न रहे. आ प्रमाणे वीश प्रकारनी असज्झायो जाणवी, अस्वाध्याय संबंधी विशेष वर्णन श्रीनिशीथसूत्रना ओगणीशमा उद्देशानी चूर्णिमां तथा आवश्यकनियुक्ति प्रमुख ग्रन्थोमांथी जाणवू. आ पयन्नाने उत्तम कहेवानो भाव ए छे के-आ ग्रन्थमां कहेला आचार-विचार- सारी रीते पालन करवामां आवे तो माणसना मन, वचन अने काया पवित्र बने अने चार पुरुषार्थपैकी उत्तम मोक्षने मेळववा समर्थ थई शके. वळी आ पयत्रो सर्व सिद्धांतना सारभूत छे तेने हे साधुओ ! तमे भणो. ___ हवे वादी शंका करतां कहे छे के-आ पयनोसाधुए जाणवो तेम तमे का तो शुं श्रावके ते न भणवो? तेना उत्तरमां शास्त्रकार जणावे छे के-आगमोने विषे श्रावकोने वाचना देवानो निषेध कयों छे. श्रीनिशीथसूत्रना ओगणीशमा उद्देशाना प्रांतभागमां का छे के-जे भिक्खू वा भिक्खुणी वा अण्णउत्थियं वा गारत्थियं वा वाएइ वायंतं वा साइज्जइ । इत्यादि. आ वाक्यनी चूर्णिमां जणाव्यु छे के-जे साधु-साध्वी अन्यमतिने, अल्पबुद्धिवाळा स्वधर्मीय गृहस्थने वाचना आपे या तो वाचना आपनारने सारो कहे तो चार लघुमासी प्रायश्चित्तने पात्र थाय. वळी जो पासत्थाने, ओसन्नाने, कुशीलीयाने, संसक्तने, सूत्रनी वाचना आपे तो पण चारमासी लघु दंड अने अर्थनी वाचना आपे तो चारमासी गुरू दंड आवे. यथाच्छंदकने सूत्रवाचना आपे तो चारमासी गुरूदंड अने अर्थनी वाचना आपे तो छमासी लघु दंड आवे. आ संबंधमां अपवाद दर्शावतां कहे छे के-कोई श्रावक दीक्षा लेवा तैयार थयो होय तो तेने छजीवणिया अध्ययनथी पिण्डैषणा सुधी वाचना आपवी, उत्सर्ग मार्ग तो श्रावकने वाचना आपवानो नथी. ___ आ गच्छाचार पयन्नना श्रवणथी, तेना मननथी अने परिशीलनथी साधु साध्वीओ जो पोताना आचार सम्यग्रीतिमा परिणमावे तो स्वकल्याणकारक थवा उपरांत परहित करवामां पण समर्थ __ आ गच्छाचारपयन्नानी टीका तपागच्छरूपी गगनमां सूर्य समान भट्टारकपुरन्दर श्रीआणंदविमलसूरीश्वरजीना चरणकमळसेवी (शिष्य) श्रीविजयविमलगणिए करेल छे. गच्छाचार टीकार्नु प्रमाण ५८५० श्लोक छे. श्रीविजयविमलगणिए वि. सं. १६३४ मा वर्षे आ टीकानी रचना करी हती. अत्रे तेमनी विस्तृत पट्टपरम्परा ग्रन्थवृद्धिना भयथी त्यजी दईने केवल अमारी मान्य राखेल पट्टपरंपरानो क्रम नीचे प्रमाणे जणाव्यो छे. श्रीगच्छाचार-पयन्ना-३१४

Loading...

Page Navigation
1 ... 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336