Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 320
________________ जिनकल्पी, २. शुद्ध परिहारिक अने ३. स्थविरद ल्पी - ए साधुओ एक मास पर्यन्त एक स्थळे वास करी शके. आ प्रमाणे ज्ञान, दर्शन तथा चारित्र ए रत्नत्रीयीनी समाधि थाय-सुखशांतिपूर्वक आराधना थाय तेवी रीते विहार करीने वर्षा समये चातुर्मास योग्य स्थाने जव. आठ मासथी ओछो के अधिक विहार केवी रीते थाय ते जणावतां कहे छे के—कोई एक स्थळमां आषाढ मासकल्प कर्यो एटले के आषाढ मासमां वास कर्यो अने पछी ते ज स्थळमां चातुर्मास ह्या एटले आषाढ मासने गणत्रीमां न लेतां सात मास विहारना थया. आवी रीते ऊण आठ मास कहीए, बीजी रीते पण ऊण आठ मास थई शके छे, ते आ प्रमाणे-जे स्थळे चातुर्मास रह्या होय त्यांथी विहार करवाना मार्गमां कादव होय, वर्षाद वरस्या करतो होय, पासेना गाम-नगरादिकने घेरो घलायो होय अगर तो मारी- मरकी आदिक उपद्रव थयेल होय इत्यादिक कारणोथी मागशर मास पछी विहार थाय तो ऊण आठ मास थाय. आठ मासथी अधिक केवी रीते थाय ? ते जणावतां कहे छे के आषाढ मासमां चातुर्मास योग्य स्थळ न मळयुं होय तो पछी एक मास अने वीश दिवस पर्यन्त क्षेत्र मेळवी शकाय छे. भादरवा शुदि पांचमने दिवसे पर्युषण कल्प करवानो होय. आ प्रमाणे नव मास ने वीश दिवस पर्यन्त विचरण थई शके. सार्थवाहनी साथे विहार करवो पडे त्यारे मन- इच्छित विचरण न थवाथी चातुर्मास माटे आषाढ मास व्यतीत थ जवा उपरांत पांच अहोरात्रि यावत् एक मास ने वीश अहोरात्र व्यतीत थई जाय. वळी दैववशात् वृष्टि ज न थई होय तो आश्विन या कार्तिक मासमां विहार करवो पडे त्यारे पण अष्ट मास अधिक थाय. कोई पण विघ्न आवी पडवानुं होय, उपद्रव्य थवानो होय, कार्तिकी पूर्णिमा पछी विहार करवानुं मुहूर्त जन आवतुं होय, नक्षत्र तेमज चंद्रनुं बळ सारुं न होय अथवा अन्य कोई पण कारणे कार्तिकी पूर्णिमा पछी विहार करवानो दिवस ज न आवतो होय तो चउमासी प्रतिक्रमण कर्या पूर्वे ज विहार करवो पडे-आवी रीते भिन्न भिन्न कारणोने अंगे आठ मास उपरांत पण विहार करवो पडे. प्रतिमाधारी एक अहोरात्रि स्थिरवास करे अने यथालंदक पांत अहोरात्रि रहे. शेष काळमां विहार कर्या करे, शुद्ध परिहारिक शब्दथी प्रायश्चित्त पामेला परिहारादिक साधुनो निषेध दर्शाव्यो छे. १ जिनकल्पी, २ शुद्ध परिहारिक अने ३ स्थविरकल्पी साधुओने माटे मासकल्पी विहार दर्शाव्यो छे. जो कोई पण प्रकारनो व्याघात होय अथवा तो अन्य कोई पण कारण उपस्थित थयुं होय तो स्थविरकल्पी मासमा ओछु या अधिक करी शके छे एटले ए रीते स्थविरकल्पीने माटे ऊण अष्ट मास या तो अधिक अष्ट मास विहार कह्यो छे परन्तु १ प्रतिमाधारी, २ यथालंदक, ३ शुद्ध परिहारिक अने ४ जिनकल्पीने माटे तो जेम आठ मास संबंधी विहार कह्यो छे तेम विहार करीने चातुर्मासना चार मास एक क्षेत्रमा ज व्यतीत करे. चोमासुं केवा क्षेत्रमा रहेवुं तेमज गाम-नगरादिकमां केवी रीते प्रवेश करवो ते संबंधी हकीकत जणावतां कहे छेके आसाढपुण्णिमाए, वासावासम्मि होइ ठायव्वम् । मग्गसिरबहुलदसमी उ, जाव एगम्मि खित्तम्मि ॥ ६ ॥ श्रीगच्छाचार - पयन्ना- ३०५

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