Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 316
________________ शकवा समर्थ होय तो एक मासमां बे के त्रण वार नदी पार उतरे अने पाछा आवी शके ऐरावती नदी कुणाला नगरी पासे बे गाउना पहोळा पट (विस्तार) वाळी अने अर्ध जंघा प्रमाणे ऊंडाईवाळी छे. गोचरीने निमित्ते पात्रादिकना लेपनादिकने निमित्ते साधु या साध्वी मासमां बे त्रण वखत जयणापूर्बक नदी पार करी शके. आ सूचनथी ऊपर जे पांच नदीना ग्रहणथी तेवा प्रकारनी सर्व नदियोनो स्वीकार जणाव्यो तेने पुष्टि मळे छे. ऐरावती नदीमां केटलीक जग्यामां ज्यारे पाणी सूकाई जाय छे त्यारे ते नदी पार करीने गोचरी अर्थे जवामां आवे त्यारे ऋतुबद्ध काळमां जळनो त्रण संघट्टा थाय, वळतां पण त्रण थाय एटले छ संघट्टा थाय. चोमासामा सात संघट्टा थाय अने पाछा आवतां सात थाय. कुल चौद संघट्टा थाय. ज्यांसुधी ते क्षेत्रमा चातुर्मास होय त्यां सुधी आटला संघट्टा करी शकाय; तेथी विशेष संघट्टो थाय तो दोष लागे. वळी ज्यां विशेष जळ-संघट्टो लागे त्यां उतरवानो पण निषेध छे. मासकल्प पूर्ण थया पछी बीजो मासकल्प करवा माटे ते नदी उतर्या सिवाय अन्यत्र जई शकतो होय तो तेम करवू. चातुर्मास पण ते नदी उतर्या सिवाय बदली शकातुं होय तो तेम ज करवू. कोई पण बीजो उपाय न होय तो नदी उतरवी, ए जिनाज्ञा छे. संघट्टा संबंधमां का छे के–“सत्त उवासासु भवे, दगसयट्टा तिण्णि हुँति उडुबद्धे । ते तु न हणंति खित्तं, भिक्खायरियं च न हणंति ।। २॥ जह कारणंमि पुण्णे, अंतो तह कारणंमि असिवादी। उवहीगहणे लिंपण, नावा य गते पि जयणाए॥३॥" वर्षाकाळमां सात अने मासकल्पमांत्रण जळना संघट्टा साधुने होई शके. आरीते क्षेत्रमा रहे तो तेनुं क्षेत्र हणाय नहीं तेमज भिक्षाचर्या पण निषिद्ध न जाणवी अर्थात् के तेओ ते क्षेत्रमा रही शके अने गोचरी अर्थे जई शके. कोई पण कारण उत्पन्न थये सते मासकल्प बाद तेमज चोमासा पछी तेवू बीजुं क्षेत्र न मळे तो नदी उतरे. मासकल्पमां पण कईं उपद्रव थाय, मारी-मरकी जेवो व्याधि उत्पन्न थाय, वस्त्रादिक उपकरणनी जरूरत उत्पन्न थाय तो नदी उतरीने पण लावी शके. जरूर पडये नावमां बेसीने पण जई शके, परन्तु तेमां जयणा तथा विधि साचववा जोईये. ___ नाव उतरवा संबंधी हकीकत नीचे प्रमाणे जाणवी-"नावथललेवहेट्ठा, लेवो वा उवरिए व लेवस्स । दोण्णी दिवढमेकं, अद्धं नावाइपरिहाति ॥ ४॥"जे स्थळे नावमां बेसवार्नु होय ते स्थळे जोवू के गमनस्थळे थलमार्गे जवाशे अने बे योजननो फेर थशे तो शास्त्रकार कहे छे के-बे योजननो फेरो खावा परन्तु नावमां न बेसबुं १, तेवीज रीते संपूर्ण लेप न लागे तेवू जळ उतरवार्नु होय, परंन्तुं दोढ योजनना फेराथी स्थळमार्गे जवातुं होय तो तेम करवू पण नावमां न बेस, २, तेवी जरीते लेप लागे तेवू जळ उतरवा- होय परन्तु एक योजनथी स्थळमार्गे जवातुं होय तो तेम करवू पण नावमां न बेसवु ३, लेप ऊपर जळ लागे तेवा मार्गमां पण अर्ध योजननो फेरो खावो पण नावमां न बेसबुं ४, आ प्रमाणे तपास करतां छतां पण बीजो कोई मार्ग ज न होय त्यारे साधु नावमां बेसी शके; परन्तु निर्ध्वंसपणुं कदी न कर. श्री निशीथचूणींना बारमा उद्देशाना प्रांतभागमां नाव संबंधी वर्णन करतां का छे के श्रीगच्छाचार-पयन्ना-३०१

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