Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 315
________________ दंसणियारं कुणई, चरित्तनासं जणेइ मिच्छत्तम् । दुण्हवि वग्गाणज्जा, विहारभेयं करेमाणी ।। १३२ ।। [दर्शनातिचारं करोति चारित्रनाशं जनयति मिथ्यात्वम् । द्वयोरपि वर्गयो: आर्या: विहारभेदं कुर्वाणाः ॥ १३२॥] गाथार्थ-जे साध्वी दर्शनातिचार लगाडे, चारित्रनो नाश करे अथवा मिथ्यात्व उत्पन्न करे, बन्ने वर्गना (साधु तेमज साध्वीना) मासकल्पादि विहारनी मर्यादानुं उल्लंघन करे ते साध्वी खरेखरी आर्या नथी. विवेचन-पंचांगीना जे पिस्तालीश प्रमुख आगमो छे, तेमां दर्शाव्या प्रमाणे विधिपूर्वक जे साध्वी चारित्र पाळे ते साची आर्या छे. जो ते मर्यादानु उल्लंघन करे तो समकितमां दूषण लगाडे छे, चारित्रनो नाश करे छे अने मिथ्यात्व उपजावे छे. आवी उन्मार्गे चालनारी साध्वी गच्छमां न राखवी. विहारनी मर्यादा संबंधी त्रेवीशमी गाथामां वर्णन थई गयुं छे छतां पण अहीं कईंक विशेष दर्शावे छे. श्री बृहत्कल्पना चोथा उद्देशामां का छे के- “नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाओ पंच महण्णवाओ महानदीओ उद्दिट्ठाओ गणिताओ वंजियाओ अंतो मासस्सदुखुत्तो वा तिखुतो वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा तं जहा-गंगा जउणा सरऊ कोसिया मही।" जेमां विपुल जळ छे तेमज घणी ऊंडी छे तेवी नदीओ महार्णवा एटले समुद्र तुल्य जाणवी. तेवी नदीओ गंगा, यमुना, सरयु, कोशिका अने मही-आ पांच नदीओ महिनामां बे वार के त्रण वार उतरवी योग्य नथी. आ सूत्र ऊपर नियुक्तिकार विस्तारथी समजण आपतां कहे छे के-“पंचण्हं गहणे णं, सेसाविय सूइया महासलिला । तत्थ पुरां बिहरिंसुं नय ताउकयाइ सुक्कंति ॥१॥"ऊपर जे पांच नदीओ जणावी तेवी रीते बीजी पण तेवी मोटी नदीओ के जेमां अगाध जळ होय अने हमेशां वहेती होय तेनो पण समावेश जाणी लेवो. आ बाबतमा प्रतिवादी शंका करतां पूछे छे के-सर्व नदीओ शा माटे गणवी? जो तेमज होय तो सूत्रकार पांच नदीना ज नामो शा माटे जणावे? तेनो उत्तर ए छे के-गंगादिक पांच महानदीओ जे देशोमां छे ते स्थळोमां पूर्वे साधुओ विचर्या हता अने ते नदीओ कदी पण शुष्क बनती नथी तेथी तेओना नामो जणाव्या छे, परंतु उपलक्षणथी तेना जेवी विशाळ, दीर्घ पुष्कळ जळवाळो अने ऊंडी नदीओ पण साथोसाथ समजी लेवी. वळी पण श्री बृहत्कल्पना चोथा उद्देशामां का छे के–“अह पुण एवं जाणिज्जा एरवई कुणालाए जत्थ चक्किया एगंपादं जले किच्चा एगं पायं थले किच्चा एवण्हं कप्पइ अंतोमासस्स दुखुत्तो वा तिखुत्तो वा उत्तरिए वा संतरित्तए वा, एवं नो चक्किया एवण्हं नो कप्पइ अंतो मासस्स दुखत्तो वा त्तिखुत्तो वा उत्तरित्तए वा।" ऐरावती नामनी नदी कुणाला नगरीनी पासे वहे छे. ते अर्ध जंघाप्रमाण ऊंडी छे. ते नदी तथा तेवा प्रकारनी बीजी नदी विधिमां दर्शाव्या प्रमाणे उतरी शकाय. एक पग जळमां अने एक पग थळमां (आकाशमां) उंची राखवाना क्रमथी साधु या साध्वी चाली श्रीगच्छाचार-पयन्ना- ३००

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