Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 310
________________ [यत्र च स्थविरा तरुणी, स्थविरा तरुणी च अंतपिता: स्वपन्ति। गौतम ! तं गच्छवरं, वरज्ञानचारित्राधारम् ॥१२३ ॥] गाथार्थ-जे गच्छमां स्थविरा (वृद्ध) साध्वी पछी तरुणी अने तरुणी पछी स्थविरा एम अंतरे सूवे छे ते गच्छने हे गौतम ! उत्तम ज्ञान अने चारित्रना आधाररूप जाणवो. विवेचन-बे वृद्ध साध्वीनी वच्चे एक तरुण साध्वीने सूq उचित छे, कारण के जो युवान साध्वीओ पासे सूवे तो शयनावस्थामां एकबीजानो हस्त जांघ, स्तन के बीजा अवयवोने स्पर्शे ते पूर्वे करेल क्रीडा याद आवतां मन विकृत बनी जाय परन्तु जो वृद्ध साध्वी वच्चे सूता होय तो आवी स्थिती न बने माटे जे गच्छमां आवो क्रम जळवातो होय ते गच्छ ज्ञानदर्शनने माटे आधारस्थंभ समान छे. हवे कई साध्वीओ फक्त मुंडित छे पण साची साध्वीओ नथी ते त्रण गाथावडे जणावे छे धोयंति कंठिआओ, पोअंति तह य दिति पोत्ताणि।। गिहिकज्जचिंतगाओ, नहु अज्जा गोअमा! ताओ ॥१२४ ।। खरघोडाइट्ठाणे, वयंति ते वावि तत्थ वच्चंति । वेसत्थीसंसग्गी, उवस्सयाओ समीवंमि ॥१२५ ।। सज्झायमुक्कजोगा, धम्मकहाविहपेसणगिहीणं। गिहिनिस्सिज्जं बाहिति, संथवं तह करतीओ ॥१२६ ।। [धोवन्ति कण्ठिका, प्रोतयन्ति तथा च ददति वस्त्राणि । गृहिकार्यचिन्तिकाः, न हु आर्या गौतम ! ताः ।।१२४ ।। खरघोटकादिस्थाने, व्रजन्ति ते वापि तत्र व्रजन्ति। वेश्यास्त्रीसंसर्गिः, उपाश्रय: समीपे ॥१२५ ॥ स्वाध्यायमुक्तयोगाः, धर्मकथाविकथाप्रेषणगृहिणाम ।। गृहिनिषद्यां बाधन्ते, संस्तवं तथा कुर्वन्त्यः ॥१२६ ॥] . गाथार्थ-जे साध्वी वगरकारणे जळथी कंठप्रदेशने धोवे, गृहस्थोना मोती आदि परोवी आपे, बाळको माटे वस्त्र-औषधादि आपे-आ प्रमाणे गृहस्थोचित कार्य करवामां तत्पर रहे ते साध्वीने हे गौतम ! साध्वी न कहेवी. * जे साध्वी हाथी, घोडा, गधेडा आदिना स्थाने जाय अथवा तेओ साध्वीना उपाश्रय पासेथी निकळे त्यारे खुशी थाय, वेश्या स्त्रीनो संग करे अथवा तो जेना उपाश्रयनी नजीक वेश्यागृह होय तेने साध्वी न कहेवी. ___*१२५ मी गाथाना पूर्वार्धनो अर्थ बीजी रीते पण आपले छे, जे नीचे प्रमाणे- “ज्यां दास-दासी जेवा तेमज जुगारी जेवा धूर्तजनोनी पासे काळे-अकाळे साध्वीओ जाय अगर तो तेवा शठ लोको साध्वीना उपाश्रये आवे.” आ अर्थ उचित लागे छे. श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २९५

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