Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 268
________________ तेना पूर्वजो तेनी पूजा-मानता करता. अर्जुनमाली पण पुष्पनो मोटो करंडियो भरी, यक्षना देरे आवी, भक्तिथी पुष्प चढावी, पंचांग प्रणिपात करी नगरीमा जतो अने पुष्पो वेची आजीविका चलावतो. ते राजगृही नगरीमा लुलिय नामनो गोठी (धूर्त) वसतो हतो ते महर्द्धिक तेम ज कोईथी गांज्यो जाय तेवो न हतो. एकदा नगरीमां महामहोत्सव शरू थवानो पडहो वाग्यो, जे सांभळी अर्जुनमालीए विचार्यु के- हवे फूलोनी घराकी सारी रहेशे एटले मोटा मोटा करंडिया लई, बंधुमती पत्नीने साथे लई ते पोताना बगीचे गयो. मोटा मोटा पुष्पो एकत्र करी, करंडिया भरी ते मोगरपाणी यक्षना मंदिर तरफ आववा लाग्या. आ बाजु पेलो लुलिय पोताना बीजा छ मित्रो साथे यक्षना मंदिरमा आवी रमत रमी रह्या छे तेवामां पेला छ मित्रोए अर्जुनने पोतानी भार्या साथे आवतो जोयो. बंधुमतीने निरखतां ज ते बधानां मन विह्वल बनी गया अने परस्पर विचारवा लाग्या के-आपणे बधाए अर्जुनने बांधीने तेनी स्त्री साथे सारी पेठे भोग भोगववो. एम विचारी करी तेओ द्वारनी पाछळ संताई गया. अर्जुने मंदिरमा दाखल थई, पुष्प चडावी जेवो प्रणाम कर्यो के तरतज ते छ मित्रोए पाछळथी आवी तेने अवळे बंधने बांधी लीधो. पछी बंधुमती साथे ते मंदिरमा ज विषयसुख भोगव्यु, आ दृश्य निहाळी अर्जुनने अतीव घृणा उपजी. ते विचारवा लाग्यो के-आ यक्षने हाजराहजुर अने प्रभाविक मानी हुं अत्यार सुधी भक्तिभावथी पूजतो हतो परंतु मने जणाय छे के आ मूर्ति तो पत्थर सदृश छे; कांई पण चमत्कारिक नथी. जो तेनामां देवत्व होत तो मने तेनी हाजरीमा आq कष्ट केम पडे? मोगरपाणी यक्षे अर्जुननो विचार जाणी लीधो एटले ते तरत ज तेना शरीरमां दाखल थई गयो. तडतड करतां तेना बंधनो तूटी गया अने हजार पल प्रमाण मोगर(गदा) बडे ते छ मित्रोने अने सातमी पोतानी स्त्रीने मारी नाखी. बाद ते यक्षावेष्टित अर्जुनमाली हमेशां छ पुरुष अने एक स्त्री एम सात जणने नगरीनी बहार मारी नाखवा लाग्यो. नगरीमा त्रास फेलाई गयो. हमेशां आ प्रमाणे मृत्यु थतां होवाथी राजाए नगरमां पडह वगडाव्यो के कोईए पण तृण, पाणी के काष्ठ माटे नगरीनी बहार जQ नहीं, जशे ते यमनो अतिथि बनशे.. ते नगरीमा सुदर्शन नामनो श्रेष्ठी वसतो हतो. ते जीवाजीवादिक नव तत्त्वनो ज्ञाता हतो. शुद्ध देव, गुरु अने धर्म ऊपर अत्यंत श्रद्धावाळो हतो. ते नगरीना गुणशील नामना उद्यानमां श्रीमहावीर परमात्मा समवसर्या. परमात्मानु नाम सांभळवा मात्रथी पाप नाश पामे तो तेओनी देशना सांभळवाथी केवो अपूर्व लाभ थाय? एम विचारी सुदर्शन श्रेष्ठीए परमात्माने वांदवा जवा माटे तैयारी करी. ते जाणी सुदर्शनना मात-पिताए नगरीनी बहार जवा माटे घणा आग्रहपूर्वक निषेध कों, कारण के अर्जुनमालीनो भय हतो. सुदर्शनने घणो समजाववां छतां तेणे पोतानो निश्चय त्यज्यो नहीं, एटले मातपिताए निरुपाये आज्ञा आपी, त्यारे स्नान करी, शुद्ध वस्त्र पहेरी, पगे चालतो सुदर्शन नगरनी बहार निकळी गुणशील उद्यान तरफ चालता चालतां मोगरपाणी यक्षना मन्दिर नजीक आव्यो. आ यक्षना त्रासथी नगरीनी बहारनी भूमि उज्जड बनी गई हती, कारण के यक्षनी नजरे जे कोई चढतुं ते पोताना नाशने ज नोतरतुं. घणा समय पछी सुदर्शनने आवतो जोई यक्ष पोतानी गदा श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २५३

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