Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 295
________________ । ॥ साध्वीस्वरूपनिरूपणे तृतीयोऽधिकारः॥ लघु, नवदीक्षिता अथवा युवती साध्वीने उपाश्रयमा एकाकी राखतां शुं दोषापत्ति थाय? ते दर्शावतां कहे छे के जत्थ य एगा खुड्डी, एगा तरुणा उ रक्खए वसहि। गोयम ! तत्थ विहारे, का सुद्धी बंभचेरस्स? ॥१०७ ।। [यत्र चैकाकिनी क्षुल्लिका, एकाकिनी तरुणी तु रक्षति वसतिम् । गौतम ! तत्र विहारे, का शुद्धि ब्रह्मचर्यस्य? ॥१०७॥] गाथार्थ-हे गौतम ! जे गच्छमां बाळ वयवाळी, नवदीक्षित युवान साध्वी एकली उपाश्रयमां रहेती होय त्यां ब्रह्मचर्यनी निर्मळता क्याथी जळवाय? विवेचन-ऊपर १०६ ठ्ठी गाथामां बाळ, नवदीक्षित के युवान साधु माटे जे जे दोषो दर्शाव्यां ते बधा बाळ, नवदीक्षित के युवान एकाकी साध्वीने पण घटी शके छे. विशेष ए के-लघु साध्वीने एकाकी देखीने कोई बळात्कारे तेनी साथे भोग भोगवे, तेनुं रूप-लावण्य देखी बलात्कारे अपहरण करी जाय. ब्रह्मचर्यनो भंग थतां युवती साध्वीने गर्भ रहे तो तेने औषधोपचारथी पडावे, जो न पडावे अने गर्भ वृद्धि पामे तो शासननी हीलना थाय. पूर्वे भोगवेली क्रीडा याद आवी जाय तो गच्छनो त्याग करवा पण मन ललचाय अने प्रांते वेश्या जेवी स्थिति भोगवी महादुःखी थाय, माटे साध्वी समुदाये उपाश्रयमां बाळ, नवदीक्षित के युवती साध्वीने एकली मूकवी नही. हजु पण साध्वी-मर्यादा संबंधी जणावतां कहे छे के जत्थ य उवस्सयाओ, बाहिं गच्छे दुहत्थमित्तिपि। एगा रत्तिं समणी, का मेरा तत्थ गच्छस्स? ॥१०८ ।। जत्थ य एगा समणी, एगा समणो य जंपए सोम!। निअबंधुणावि सद्धिं तं गच्छं गच्छगुणहीणं ॥१०९ ।। जत्थ जयारमयारं, समणी जंपइ गिहत्यपच्चक्खम्। पच्चक्खं संसारे, अज्जा पक्खिवइ अप्पाणं ॥११० ।। जत्थ य गिहत्यभासाहिं भासए अज्जिआ सुरुठ्ठावि। तं गच्छं गुणसायर!, समणगुणविवज्जिअं जाण ॥१११ ।। गणिगोअम ! जा उचिअं, सेअवत्थं विवज्जिउं । सेवए चित्तरूवाणि, न सा अज्जा विआहिया॥११२ ।। [यत्र चोपाश्रयात् बहि-र्गच्छेद द्विहस्तमात्रामपि । एकाकिनी रात्रौ श्रमणी, का मर्यादा तत्र गच्छस्य? ॥१०८ ॥ श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २८०

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