Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani
View full book text
________________
करे छे ते अवश्य विनाश पामे ज. (७) वस्त्रालंकारथी सुशोभित युवान स्त्री अशोक वृक्षने पाटु मारे त्यारे ते विकस्वर थाय छे, मोढामां मदिरानो कोगळो भरी स्त्री बकुल ऊपर छांटे त्यारे ते शोक रहित थाय अर्थात् विकस्वर बने, कुरब नामना वृक्षने ज्यारे स्त्री आलिंगन करे छे त्यारे ते प्रफुल्लित थाय छे अने तिलक वृक्षने स्त्री कटाक्ष युक्त निहाळे त्यारे विकास पामे छे. एकेन्द्रियमां पण इंद्रियनो रस प्रबळ होय छे. जेओ आवा प्रकारना इन्द्रियना रसने जीते छे ते ज गच्छ सुगच्छ जाणवो. हवे बीजी साधुस्वरूप अधिकारनो उपसंहार करतां कहे छे के
तम्हा सम्मं निहालेडं, गच्छं सम्मग्गपट्ठियम् ।
वसिज्ज पक्खमासं वा, जावज्जीवं तु गोयमा ! ॥। १०५ ।। खुड्डो वा अहवा सेहो, जत्थ रक्खे उवस्सयम् । तरुणो वा जत्थ एगागी, का मेरा तत्थ भासिमो ॥१०६ ॥
[तस्मात् सम्यग् निभाल्य. गच्छं सन्मार्गप्रस्थितम् ।
वसेत् पक्षं मासं वा, यावज्जीवं तु गौतम ! ।। १०५ ॥ क्षुल्लो वाथवा शैक्षो, यत्र रक्षेत् उपाश्रयम् । तरुणो वा यत्र एकाकी, का मर्यादा तत्र भाषामहे ? ।। १०६ ।।]
गाथार्थ- सन्मार्ग प्रतिष्ठित गच्छने कुशळ बुद्धिथी तपासीने तेवा गच्छमां पक्ष, मास अथवा जीवन पर्यन्त हे गौतम! वसवुं.
जे गच्छनी अंदर बाळवयवाळो अथवा नवदीक्षित साधु अथवा तो युवान यति उपाश्रयनी सारसंभाळ करतो होय ते गच्छमां तीर्थंकर भगवंत तेमज गणधर महाराजानी आज्ञारूपी मर्यादा क्यांथी होय ?
विवेचन - जेने दीक्षा लीधा छ महिना थया होय तेने शैक्ष अथवा नवदीक्षित जाणवो. बाळवयवाळा शिष्यने उपाश्रये एकलो मूकी जतां दोषोत्पत्ति थाय; जेमके - एकलो रहे तो रमत करवा लागे, अन्य रमतां छोकराने जोई तेनी साथे रमवा जाय तो धूर्त पुरुषो तेनी उपधि आदि लई जाय, कोईनी लालचमां लपटाई जाय, नाटक - प्रेक्षणक थतुं होय ते जोवा चाल्यो जाय, एकलो रहेवाथी तेना परिणाम फरी जाय तो उपधि विगेरे लईने चाल्यो पण जाय; माटे बाळ के नवदिक्षितने उपाश्रये एकलो मूकवो नहीं. युवान साधुने उपाश्रये एकाकी राखवाथी कया दोषो लागे ते जणावतां कहे छे के मोहनीय कर्मना उदयथी ते हस्तकर्म करवा प्रेराय, अंग मरोडे, लिंगलेपन करे, कोई स्वरूपवती स्त्रीने देखीने चोथा महाव्रतनो भंग करे, तेनी साथे हास्यादिक चेष्टा करे, विशेष मोहनीयना जोरथी गच्छनो त्याग करीने जतो रहे. इत्यादिक अनेक दोषोनो संभव जाणी कदी पण बाळ, नवदीक्षित के युवान साधुने उपाश्रये एकला राखवा नहीं. आ संबंधी विशेष वर्णन श्रीनिशीथचूर्णिमां आपेल छे.
यतिस्वरूप नामनो आ बीजो अधिकार संपूर्ण थाय छे. आ बीजा अधिकारनो सारांश ए छे
श्रीगच्छाचार - पयन्ना- २७८

Page Navigation
1 ... 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336