Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 282
________________ वागतां ते मृत्यु पामी. वस्त्र तो श्वेत हता. ते राणीने जणातां ज पोताना अविचारी कृत्य माटे घणो ज संताप थयो. आवो ज एक बीजो प्रसंग बनी गयो. राणी पूजन बाद नृत्य करी रही हती अने राजा वाजिंत्र वगाडी रह्या हता तेवामां राजाने राणीनुं शिर-विहुणुं मात्र धडज जाणे नाचतुं होय तेम जणायु तेना गात्र ढीला पडी गया अने वाजिंत्र अटकी गयुं. राणीना नृत्यमान भंग पडतां तेणे कारण पूछयु. अतिशय आग्रह बाद राजाए सत्य हकीकत कही एटले दासीना अवसान बाद जे वात भुसावा मांडी हती ते पुन: ताजी थई. राणीए निश्चय कर्यो के-हवे पोतानुं आयु अल्प छे. तेणे राजा पासे आत्मकल्याणना पंथे जवा रजा मागी. राजाए एक शरते रजा आपी के-जो तुं काळ करीने देव थाय तो अमोने प्रतिबोध पमाडवो. प्रभावतीए चारित्र पाळी स्वर्गप्राप्ति करी. देव थया पछी प्रभावतीए राजाने प्रतिबोधवा अने जैनधर्मी बनाववा केटलाय प्रयासो कर्यां पण राजा तो तापसभक्त बन्यो. प्रभावती देवे तेने प्रतिबोधवा तापस वेश ग्रहण कर्यों अने राजाने एक अत्यंत मनोहर फळ आप्यु, तेना स्पर्शथी राजाने आनंद थयो, तेनी गंध पण उत्तम हती अने तेनो स्वाद तेने अमृत फळ जेवो जणायो एटले राजाए ते तापसने पूछयु के-आवा फळो क्यां मळे छे? तापसे का-मारी साथे तमे एकला आवो तो देखाईं. राजा तेम ने तेम अलंकार युक्त तापसनी पाछळ पाछळ गयो. थोडे दूर गया पछी एक वन देखायुं तेमां प्रवेश करतां थोडे दूर एक तापसाश्रम देखायो. राजाने आवतो जोई घणा तापसो एकत्र थई गया अने राजाने सर्व वस्त्राभूषणथी सज्ज जोई, तेने मारी नाखी तेना सर्व अलंकार लई लेवानो विचार करवा लाग्या. तेओनो तेवो विचार जाणी राजा भय पामी त्यांथी नाशवा लाग्यो. थोडे दूर जतां ते ज वनमां मनुष्योनो विशाळ समूह जोयो. पोताने शरण मळशे तेवा हेतुथी राजा त्यां गयो तो कामदेव जेवा स्वरूपवान, सौम्यमूर्ति, बृहस्पति समान विद्वान् साधुसमूहने अने तेनी पासे उपदेश सांभळतां चतुर्विध संघने जोयो. आचार्ये राजाने निर्भय बनवा का. राजा त्यां बेठो अने स्थिर चित्तथी उपदेश सांभळ्यो. जैनधर्मनो अंगीकार पण को. राजानी जैनधर्ममां दृढ श्रद्धा थई जाणी प्रभावती देवे पोतानी सर्व माया संहरी लीघी एटले राजाए पोताने एकलो सिहासन उपर बेठेलो जोयो. जाणे हुं क्यांय गयो नथी तेम आव्यो नथी. आ शुं थयुं ? तेम बिचारे छे तेवामा प्रभावती देवे प्रत्यक्ष थई का के-आ सर्व में ज तमने प्रतिबोध पमाडवा विकुयु हतुं. हवे तमे जैनधर्मनुं यथार्थ पालन करजो अने भविष्यमां कई पण विघ्न उपस्थित थाय त्यारे मारुं स्मरण करजो. ___ आ बाजुप्रभावती राणीना चारित्र-स्वीकार पछी पूजनादिनुं कार्य एक कुबडी दासीए स्वीकार्यु, तेना मनमां चमत्कारिक बिंबप्रत्ये भाव हतो एटले स्वेच्छाथी पूजारिणी पद स्वीकार्यु, धीमे धीमे आ प्रतिमा- माहात्म्य देशदेशावरमां प्रसरी गयुं हतुं. ___ गंधार देशनो कोई एक श्रावक दीक्षा लेवानी भावनावाळो थयो. दीक्षा लीधा पहेलां तेने तीर्थंकरोनी जन्म, दीक्षा, केवळ अने निर्वाणभूमिओना दर्शन करवानी इच्छा थई. ए प्रमाणे परिभ्रमण करतां ते घणा मुनिओना संसर्गमां आव्यो. एकदा कोई मुनिराज पासे सांभळयु के-वैताढ्य पर्वतनी श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २६७

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