Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 283
________________ गुफामा श्री ऋषभदेव आदि चोवीश तीर्थंकरोनी रत्नमय मूर्तिओ अलौकिक अने चमत्कारिक छे. प्रतिमाओना दर्शन करवानी भावनाथी गंधार श्रावक महामुशीबते त्यां गयो. देवाराधन करी, तेणे ते स्फटिक रत्नमय प्रतिमाओनां भावपूर्वक दर्शन कर्यां. ते स्थळमां रत्ननो अतिशय ढ़गलो जोई तेनुं मन लेश मात्र चलायमान न थयुं तेथी देवे तुष्टमान थई तेने 'वर' मागवा कह्यं निर्लोभी गंधार श्रावके पोताना अनिच्छा दर्शावी त्यारे 'अमोघं देवदर्शनम्' एम जणावी देवे तेने बत्रीश गुटिकाओ आपी अने कह्यं के-आ गुटिकाओना प्रभावथी मनचिंतित दरेक कार्य सफळ थशे. त्यांथी पाछा वळतांवीतभयनगरना श्रीमहावीर जिनबिंबनी प्राभाविकता सांभळी ते त्यां आव्यो. थोडा दिवस रही प्रभुभक्ति अपूर्व लाभ लीधो. अचानक गंधार श्रावकनुं स्वास्थ्य बगड्युं. ते मांदो पडयो. परदेशमां तेनुं स्वजन कोण होय ? कुबडी दासीए तेनी सेवा-चाकरी करी. सगी बहेन चाकरी करे तेवा भक्तिभावथी दासीए गंधारी सेवा-शुश्रूषा करी, तेथी गंधारने आराम तो न थयो, परन्तु तेनो दुःखभार ओछो थयो असाध्य रोगे गंधारनो प्राण लीधो ते पूर्वे तेणे कुबडी दासीने पोतानो गुटिकासंग्रह आपी दीधो अने साथसाथ तेना फायदा पण समजाव्या. गंधारना मृत्यु पछी दासीने गुटिकानो चमत्कार जोवानी तालावेली लागी. तेणे एक गुटिका खाई स्वरूपवान थवानी इच्छा करी तो गुटिकाना प्रभावथी देवांगना समी बनी गई. एक गुटिकानो चमत्कार जणायो के तरत ज दासीए मनोरथना किल्ला चणवा मांडया. अत्यार सुधी भोगसुखथी वंचित रहेल तेणीनी विलासनी वासना वृद्धि पामी, पण उदायन राजा द्वारा तेनी तृप्ति थवी अशक्य जणातां तेनी नजर उज्जैनीना राजवी चंडप्रद्योत ऊपर पडी. तेनुं नाम पण हवे सुवर्णगुटिका तरीके प्रसिद्धि पाम्युं. चंडप्रद्योते पोताना दूतने उदायन राजा पासे सुवर्णगुटिकानी मागणी करवा मोकल्यो. उदायने दूतनो तिरस्कार करी काढी मूक्यो. उदायन साथे बाथ भीडवी चंडप्रद्योतने माटे अशक्य हतुं, कारण के उदायनना सामर्थ्यथी ते सारी रीते परिचित हतो. तेणे युक्तिथी काम लेवानो निर्णय कर्यो. एक रात्रि पोताना अनिलगिरि नामना गंधहस्ती ऊपर बेसी, थोडा माणसो साथे ते वीतभयनगरे आव्यो. सुवर्णगुटिकाने तैयार थई जवा कह्यं, पण सुवर्णगुटिकाए कह्यं के-आ चमत्कारी प्रतिमा माराथी अहींथी एक पगलुं पण न खसाय, माटे आना जेवी ज महावीरनी बीजी प्रतिमा बनावी, तेने अहीं स्थापन करी, आ प्रतिमा आपणे साथे लई जवी जोईए. चंडप्रद्योतने सुवर्णगुटिकानुं वचन स्वीकार्या सिवाय छूटको नहोतो. उज्जैनीमां आवी चंडप्रद्योते तेवी प्रतिमा करावी. पछी अनुकूळ समय जोईने वीतभयपट्टणे गयो. मूळ प्रतिमाने स्थाने बीजी प्रतिमा स्थापी ते सुवर्णगुटिका साथे पोतानी नगरे पहोंची गयो. अनिलगिरि गंधहस्तीना आववाथी उदायन राजाना हाथीओ आलानस्तभं उखाड़ी नाखवा प्रयास करवा लाग्या हता, कारण ते गंधहस्तीनी गंध सामान्य हस्तीओ सहन करी शकता नथी हाथीओना श्रीगच्छाचार - पयन्ना — २६८

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