Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 273
________________ तेल ढोलाई गयं. भट्टाए बीजो लाववा का तो बीजो पण फूटी गयो, त्रीजो पण फूटी गयो छतां भट्टाए अंशमात्र दासी ऊपर क्रोध न कर्यो, केमके क्रोधना परिणाम ते स्वयं अनुभवी चूकी हती. छेवटे ते पोते ऊभी थइ, चोथो घडो लावी मुनिराजोने तेल वहोराव्यु. आ कथानो सारांश ए छे के-अच्चंकारी भट्टा जेवी श्राविकाए क्रोध तथा मानने हण्यां तो साधुओए तो सर्वथा क्रोध मानने त्यजवा ज जोईए. माया संबंधी पांडुर आर्यानी कथा एक पासत्थी साध्वी विशेष उपकरण राखी शरीरनी शोभा करती. धोईने श्वेत वस्त्र पहेरे एटले लोकोए तेनुं पांडुर आर्या एवं नाम स्थाप्यु, ते आर्या मंत्र, तंत्र, वशीकरण विगेर विद्या जाणती. लोकोने दोरा-धागा पण करी आपती, तेथी लोकोमा तेनी ख्याति विशेष हती. लोको तेनुं बहुमान करता अने मस्तक पण नमावतां. तेनी पासे लोको स्वार्थ साधवा माटे वारम्वार आव्या करता एटले लोकोनो संसर्ग सारा प्रमाणमा रहेतो. आ कार्य करतां घणाय वर्षों व्यतीत थई गया. ते वृद्धा बनी गई. तेने वैराग्य उद्भव्यो एटले गुरु पासे गई. गुरु पासे तेणे पोताना दुष्कृत्यनी आलोचना मागी. गुरुए का के-जो तुं मन्त्र-तंत्र विद्यादिक सर्वनो त्याग करे तो तने आलोयण आपुं. पांडुर आर्याए का के-हुँ दीर्घ समय दीक्षा पाळी शकीश नहि त्यारे गुरुए अमुक साधु-साध्वीने तेनी पासे राखी अणशण कराव्यु. थोडा साधु-साध्वीने पोतानी पासे नीहाळी ते आर्तध्यान करवा लागी. पूर्वे सेंकडो माणसोने पोतानी पासे जोयेला अने ए रीते समय व्यतीत करेलो एटले तेने आ स्थितिमां आनंद न आव्यो जेथी मानसिक रीते वशीकरण विद्यानुं आह्वान कर्यु, विद्याना प्रभावथी अल्प काळमां ज गाम-परगामना हजारो माणसो धूप, दीप लई, आभूषणो तथा स्वच्छ वस्त्रो परिधान करी पांडुर आर्या पासे आववा लाग्या. गुरुए पासे राखेला साधु-साध्वीने पूछयु - शुं तमे लोकोने पांडुरना अणशणनी वात करी ? तेओए पोतार्नु? अज्ञानपणुं दर्शाव्युं त्यारे गुरुए आर्याने पूछ्युं तेणे जेवी हती तेवी हकीकत कही एटले गुरुए कह्य-भद्रे ! एम न करवं. आर्याए मिथ्या दुष्कृत आप्यो; परंतु पांडुरथी लोकोना आदर-सत्कार विना रही शकायुं नहीं एटले बीजी वार, त्रीजी वार वशीकरण विद्यानुं आह्वान कर्यु. गुरुए निषेध करवाथी त्रण वार आलोचना लीधी. चोथी वार पाछो विद्यानो उपयोग को अने गुरुए कारण पूछ्युं त्यारे गुरु हवे ठपको आपशे तेवा भयथी कपट करी पांडुरे जवाब आप्यो के– लोको तो पूर्वना अभ्यासथी चाल्या आवे छे. हुं कई विद्यानो प्रयोग करती नथी. आ प्रमाणे माया करी, आलोचना कर्या सिवाय काळधर्म पामवाथी सौधर्म देवलोकमां ऐरावण नामना देवनी अग्रमहिषी थई. पूर्व भव जोई श्रीमहावीर भगवन्तने वांदवा आवी अने देशनाने अन्ते भगवान महावीर पासे हाथणी रूपे जई मोटा मोटा शब्दपूर्वक वातचीत करवा लागी. आ दृश्य जोई श्रीगौतमस्वामीए भगवानने कारण पूछ्युं एटले भगवन्ते तेनो पूर्वभव कही संभळावी मायानो निषेध उपदेश्यो. श्रीगच्छाचार–पयन्ना-२५८

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