Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani
View full book text
________________
[ यत्र मुनीनां कषायाः, उदीर्यमाणा अपि परकषायैः । नेच्छन्ति समुत्थातुं, सुनिविष्टः पंगुलः चेव ॥ ९७ ॥]
गाथार्थ- सुखपूर्वक बेठेल पांगळा माणसनी माफक जे मुनिना कषायो बीजाओना क्रोधादिक कषायोवडे उद्दीपन कराय छतां उदय पामता नथी तेने हे गौतम! गच्छ जाणवो.
विवेचन - पांगळो सुखपूर्वक बेठो होय त्यांथी पोतानी मेळे ऊभो न थाय तेम जे मुनिना कषायो बीजाना चळाव्या न चळे उदयमान न थाय ते साधु ज खरेखर सत्पुरुष छे अने वा साधुओना वसवाटवाळो गच्छ ज सुगच्छ छे. आ बाबतमां ग्रंथकार (१) स्कंदाचार्यना शिष्यो (२) अर्जुनमाळी अने (३) दमदंत मुनिना दृष्टांतो आपे छे.
स्कंदाचार्यना शिष्योनुं वृत्तांत
चंपा नगरीमां खंधक (स्कंदक) नामना राजाने पुरंदरयशा नामनी बहेन हती, जेने कुंभकारकड नगरना राजवी दंडक साथे परणावी हती. तो दंडक राजाने पालक नामनो मिथ्यात्वी पुरोहित हतो. ते एकदा दूत बनीने चंपा नगरीए आव्यो अने राजसभामां जैन धर्म तेम ज साधुओनो अवर्णवाद बोलवा लाग्यो. खंधके पोते तेनी साथे वाद करी तेने परास्त कर्यो. पालक अत्यंत क्रोधान्वित थई पोताना नगरे पाछो आव्यो. तेना मनमां वैरनी ज्वाळा बळती हती. खंधकनो बदलो लेवानो तेणे नक्की मनसूबो कर्यो.
खंधके योग्य अवसरे वैराग्य-वासित थई, पुत्रने राज्य सोंपी श्रीमुनिसुव्रतस्वामी पासे प्रव्रज्या लीधी. पांच सो व्यक्तिओए तेमनी साथे दीक्षा लीधी. भगवन्ते तेमने पांच सो साधुओना आचार्य तरीके स्थाप्या. शास्त्राध्ययन करी स्कन्दक मुनि गीतार्थ बन्या.
एकदा तेमणे श्रीमुनिसुव्रतस्वामी पासे पोतानी बहेन तथा बनेवीने प्रतिबोधवा जवा माटे आज्ञा मागी त्यारे परमात्माए कह्यं के-त्यां जवाथी तमने उपसर्ग थशे. स्कन्दक मुनिए पूछ्र्युं के विराधक थशुं के आराधक ? भगवन्ते कह्यं के तमारा सिवाय सर्व मुनि आराधक थशे. फक्त एक तमो ज विराधक थशो. मारा सिवाय सर्वनुं कल्याण सधातुं होय तो सारुं एम विचारी स्कन्दक मुनि तो पांच सो मुनिना परिवारयुक्त विहार करवा लाग्या. आ बाजु पालक पुरोहितने आ वातना समाचार मळतां ज तेणे पोताना पूर्वना वैरनो बदलो लेवानी युक्ति रची. नगरनी बहार अंग नामनुं उद्यान हतुं तेमां पांच सो शस्त्रो गुप्त रीते संताडाव्या. नगरनी समीप आवी पहोंचेला स्कंदक मुनिए तेज उद्यानमां वास कर्यो. नगरमा समाचार मळतां ज पौरजनो वांदवा गया. पुरन्दरयशा पण अतीव आनन्द पामी. मुनिने वांदी रत्नकम्बल वहोराव्यं.
आ बाजु पालके राजाना कान भंभेर्या. हे स्वामिन् ! आ स्कन्दक मुनि परिश्रम सहन करी शकता नथी. दीक्षाथी कंटाळी गया छे. पोताना राज्यमा कई पण कारी फावे तेम न होवाथी पांच सो सुभटो साथे आवी तमारुं राज्य लई लेवा मांगे छे. राजाए कह्यं के तने आ वातनी खबर केम पडी ? पालके कह्यं के-तमने मारी नांखवा माटे साधुओना रूपमा सुभटो साथे लाव्या छे अने
श्रीगच्छाचार- पयन्ना- २५१

Page Navigation
1 ... 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336