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कराववानो त्याग नथी-आ प्रमाणे जघन्यथी एक, बे के त्रण दिवस अने उत्कृष्टथी आठ मास पर्यंत विचरे. नवमी-आठमीमां दर्शाव्या उपरांत पोताने अर्थे पण बीजा पासे आरम्भ न करावे पण बीजो कोई पोताने अर्थे आरम्भ करता होय तो तेनो त्याग नथी-आ प्रमाणे जघन्यथी एक, बे के त्रण दिवस अने उत्कृष्टथी नव मास पर्यन्त विचरे. दशमां-नवमीमां दर्शाव्या उपरांत पोताने अर्थे करेल भोजननो त्याग करे, मस्तक मुंडावे, चोटी रखावे, कोई वस्तु माटे पुत्रादिक पूछे तो बे अक्षर-हा के ना कहे. जाणता होय तो हा कहे. अने न जाणतो होय तो ना कहे-आ प्रमाणे जघन्यथी एक, बे के त्रण दिवस अने उत्कृष्टथी दश मास पर्यंत विचरे. अगियारमी-दशमीमां दर्शाव्या उपरांत मस्तक मुंडावे के लोच करे, साधुनी जेम वेष अने पात्रादिक राखे तेम राखे, साधुनी माफक ईर्यासमितिपूर्वक चाले, गोचरी अर्थे गृहस्थने घरे जाय त्यारे भात के दाळ रंधाई गया होय तो बने कल्पे. गृहस्थना घरमां जईने कहे छे के-हुं श्रावकनी पडिमा अंगीकार करेलो श्रावक छु माटे मने भिक्षा आपो. आ प्रमाणे मार्गमां विचरतां पण कोई प्रश्न करे के-तमो कोण छो? तो कहे के-हुँ पडिमाने वहन करनारो श्रावक छु. आ प्रमाणे जघन्यथी एक, बे के त्रण दिवस अने उत्कृष्टथी अगियार मास पर्यंत विचरे. आ बाबत कोई प्रश्न करे के-तो पछी तेओ साधु केम थई जता नथी? कारण के छल्ली अगियारमी पडिमामां तो साधुना जेवी ज आचरणा छे. आ प्रश्ननो खुलासो ए छे के-हजी स्वजनवर्गनो स्नेह तूट्यो नथी एटले सर्व विरति न ग्रही शके. महाशतक श्रावके आ अगियारे प्रतिमानुं वहन कर्यु अने तपश्चर्यादिकने कारणे तेनो देह दुर्बल बनी गयो. लोही तथा मांस सुकाई गया अने नाडीमां श्वासमात्र रह्यो. आ प्रमाणे कायकष्ट सहन करतां एकदा पाछली रात्रिमा धर्म-जागरण करतां तेने विचार उद्भव्यो के-देह दुर्बल थयो छे, लोही-मांस क्षीण थई गया छे अने नाडीमां श्वास छे तो हुं अणशण स्वीकारूं. बाद चारे आहारना त्यागपूर्वक- अणशण स्वीकारी विचरतां तेमने शुभ अध्यवसायोने अंगे अवधिज्ञान उत्पन्न थयु पूर्वदशामां लवणसमुद्रना हजार योजन, दक्षिण अने पश्चिम दिशामां पण हजार-हजार योजन पर्यंत अने उत्तर दिशामां चुल्लहिमवंत पर्वत पर्यंत जाणवा-देखवा लाग्या. ऊर्ध्वदिशामां सौधर्म देवलोक पर्यंत अने अधोलोकमां रत्नप्रभा नारकीना लोलुय नामना पाथडामां चोराशी हजार वर्षना आयुष्य प्रमाणने जाणवा-देखवा लाग्या.
एकदा महाशतक पोतानी पौषधशाळामां छे तेवामां रेवती पूर्वनी माफक मदिरा-मस्त बनीने तेमनी पासे आवी अने केश छूटा मूकी, ओढवानुं वस्त्र आधु-पार्छ करती, हावभाव दर्शावती विषयसेवन माटे याचना करवा लागी. रेवतीए एक वार, बीजी वार अने त्रीजी वार पण ए ज प्रमाणे का एटले महाशतकने क्रोध उद्रव्यो अने अवधिज्ञानथी जोई तेने का के-“हे रेवती ! तारा अकृत्य अने दुष्ट आचरणथी तुं आजथी सातमी रात्रिए अळस रोगनी व्याधिथी मृत्यु पामी, रत्नप्रभा नारकीना लोलुय नामना पाथडामां चोराशी हजारना आयुष्यवाळा नारकी तरीके उपजीश.” महाशतकना आवा कठोर वचन सांभळतां ज रेवतीने भान आव्युं तेने जणायु के-महाशतक मारा ऊपर रूठ्यो छे अने मने धीरे धीरे मारी नाखशे. वळी मने श्राप दीधो छे तो मारूं हवे शुं थशे? एम भयभ्रांत
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २४६