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१६. अरुणोपपात, १७. वरुणोपपात, १८. गरुडोपपात, १९. धरणोपपात, २०. वैश्रमणोपपात, २१. वेलंधरोपपात अने २२. देवेंद्रोपपात-जेना अध्ययनथी ते ते नामना देव प्रत्यक्ष थाय अने स्मरण करनारनी स्तवना-स्तुति करी तेमनी कार्यसिद्धि करे. अरुण, वरुण विगेरे देवोनो जेमां संबंध छे ते अरुणोपपात, वरुणोपपात इत्यादि सूत्रो जाणवा.
२३. उत्थानश्रुत - जेना अध्ययनथी गाम, नगर, कुल अने राजधानी विगेरे उज्जड थाय ते. ज्यारे कोई साधु-मुनिराज क्रोधावेशमां आवे त्यारे आ श्रुतनो एक वार पाठ करे त्यारे सर्वत्र लोक भयभ्रान्त थई जाय अने बीजी त्रीजी वार भणे त्यारे सर्व ग्राम-नगरादिक छोडीने चाल्या जाय-नाशी जाय. .. २४. समुत्थानश्रुत - ज्यारे उपर्युक्त क्रोधी मुनिराजनुं कार्य थई जवाथी तेमना चित्तनी शांति थाय-प्रसन्नचित्त थाय त्यारे पार्छ समुत्थानश्रुत भणे ने तेना एक बे-त्रण वारना पाठथी नाशी गयेला लोको पाछा मंगलनी इच्छाथी आवीने ग्राम नगरादिकमां निवास करे.
२५. नागपरिज्ञावलिका-नागकुमार देवनी परिज्ञा. चूर्णिकार जणावे छे के- ज्यारे साधु आ अध्ययन भणे त्यारे संकल्प कर्या विना पण नागकुमार देव पोताना स्थानमा रह्या छतां ते साधु-मुनिराजने वांदे अने संघ पर कोई पण संकट आवी पड्युं होय तो तेनुं निवारण करे.
२६.निरयावलिका-तेमां नरकावासानुं वर्णन छे. नरकमांजनारा मनुष्य अने तिर्यंचों विगेरेनुं पण वर्णन आपवामां आव्युं छे.
२७. सूत्रकल्पिक - सौधर्मादि देवलोकना कल्प संबंधी वर्णन छे.
२८. कल्पावतंस-विमानना शिखरादिनुं वर्णन. चूर्णिकार एम पण कहे छे के सौधर्म तथा ईशान देवलोकने विषे जे विमानो छे तेमां अत्यंत तपश्चर्या द्वारा जे देवपणे उपजे तेने लगतुं वर्णन आपेल छे.
२९. पुष्पिका- गृहस्थावासनो त्याग करी जे संयमभावमां स्थिर थया एटले सुखिया थया तेने लगतो अधिकार छे. ___३०. पुष्पचूलिका- गृहस्थपणानो त्याग करी साधुत्व स्वीकार्या बाद पासत्थापणे विचरवा संबंधी अधिकार.
३१. वह्निदशांग-अंधकवृष्णि राजाना कुळमां उत्पन्न थईने जेओ मोक्षे गया तेओने लगतो अधिकार.
आ प्रमाणे उत्कालिक अने कालिक श्रुतनी संख्या गणावता पार आवे तेम नथी. आपणे पूर्वे जाणी गया ते प्रमाणे श्रीऋषभदेवना समयमा ८४ हजार, बावीश तीर्थंकरना समयमां संख्याता हजार अने श्रीमहावीर परमात्माना समये चौद हजार प्रकीर्णको रचाया छे. भगवान श्रीऋषभदेवना चोराशी हजार साधुओ हता माटे तेमना समयमां कालिक अने उत्कालिक श्रुतनी संख्या चोराशी हजारनी थई, कारण के भगवंते उपदेशेल श्रुतनो अंगीकार करीने जे रचना करे ते सर्व प्रकीर्णक
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २२