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अध्यवपूरक, पृतिबादर अने प्राभृतिक आ बधा अविशुद्ध कोटिना छे. जेम क्षीरमां मूत्रनो छांटो पडी जतां सर्व क्षीर अशुद्ध थई जाय, शुद्ध आहारमा अविशुद्ध आहार- एक बिंदु जो आवी जाय तो सर्व शुद्ध आहार पण अशुद्ध बनी जाय ते पूतिकर्म कहेवाय छे, तेना बे भेद छे(१)सूक्ष्मपूतिकर्म-आधाकर्मी हींग प्रमुख अशनादिकनी गंध, आधाकर्मी अग्निनी ज्वाळा तथा धूमाडो शुद्ध आहारने लागे तो ते सूक्ष्मपूतिकर्म कहेवाय परन्तु ते आचीर्ण छे-साधुने वहोरवा योग्य छे कारण के आ दोषो अशक्यपरिहार छे.(२) बादरपूतिकर्मक-तेना बे प्रकार छे. एक उपकरण-चूलो, कडछी, तावडो, चमचो विगेरे रसोई करवाना साधनो तेमज घंटी, सांबेलुं विगेरे उपकरणो होय तेमाथी प्राप्त थयेल अशनादिक आहार शुद्ध होय तो पण दूषित छे. बीजो भक्तपानपूतिकर्म-आधाकर्मी वघार, हींग, निमक, जीरुं विगेरेथी व्याप्त. आ बन्ने प्रकार साधुओने कल्पे नहीं.
हवे कल्पनो अधिकार दर्शावे छे-भोजन कर्या बाद पात्रा साफ करवा ते कल्प. सामान्यपणे सात वखत धोवानो कल्प छे. विशेषथी तो तेना जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट एम त्रण भेद दर्शाव्या छे. (१) भात, रोटली, मग, वाल, गोळ, चणा, तुर विगेरेनो आहार पात्राने विशेष लेप न करे एटले ते जघन्य कल्प. तमां पात्रा त्रण बार धोवा, एक वार अंदर, बीजी वार बहार अने त्रीजी वार अंदर अने बहार (२) मग तथा अडदनी दाळ, कांजी, दही विगेरेनो अल्प लेप लागे ते मध्यम कल्प, तेमां पात्रा पांच वार धोवा. वे वार बहार बे वार अंदर अने एक वार अंदर अने बहार. (३) दूध, दही, क्षीर, घी विगेरेनो विशेष लेप लागे ते उत्कृष्ट कल्प, तेमां पात्रा सात वार धोवा. त्रण वार अन्दर, बे वार बहार अने वे वार अन्दर बहार बधे.
प एटले हस्तने मणिबंध (पहोंचा) सुधी जळादिकथी धोवो. स्थंडिल तथा मात्रादिक प्रसंगे हस्त धोवो पडे तेथी श्रीनिशीथसूत्रना चोथा उद्देशामां आ संबंधी वर्णन करतां जणाव्यु छ के- “जे भिक्खू २ साणुप्पाए उच्चारपासवणभूमि ण पडिलेहेइ न पडिलिहंतं वा साइज्जइ । जे भिक्खू २ तओ उच्चारपासवणभूमिओ ण पडिलेहेइ न पडिलेहंतं वा साइज्जइ । जे भिक्खू २ खुड्डागंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिठवइ परिठवंतं वा साइज्जइ । जे भिक्खू २ खुड्डागंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिठवइ परिठवंतं वा साइज्जइ ॥" साधु या साध्वीए दिवसना चोथा भागना चोथा विभाग जेटलो दिवस रहे त्यारे स्थंडिल तथा मात्रानी भूमि प्रमार्जवी. जो ते प्रमाणे न पडिलेहे अने न पडिलेहनारनी अनुमोदना करे तो ते प्रायश्चित्तने पात्र बने छे. जे साधु या साध्वी त्रण उच्चारपासवण भूमि न प्रमाजे तेमज न पडिलेहनारने सारो कहे ते पण दंडने पात्र थाय छे. जे साधु या साध्वी क्षुल्लक स्थंडिलभूमिमां उच्चारपासवण वोसरावे अने वोसरावनारने सारो कहे ते पण प्रायश्चित्तने योग्य गणाय. जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट-एम त्रण प्रकार- स्थंडिलप्रमाण छे. त्रसादिक जीवथी रहित भूमि ते स्थंडिलभूमि. एक हाथ लांबी-पहोळी अने चार आगंळ ऊंडी अचित्त स्थंडिलभूमि जघन्य कहेवाय. आ प्रमाणथी एक आंगळ न्यून भूमिमां स्थंडिल-मातरूं परठवे तो दोषभाजन थाय. आ प्रमाण करतां विशेष भूमि ते मध्यम मान जाणवू. उत्कृष्ट स्थंडिलप्रमाण बार योजन- होय, कारण के चक्रवर्तीनी सेना बार योजन विस्तारवाळी होय छे. जे साधु या साध्वी
श्रीगच्छाचार-पयन्ना-१९७