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करी शके ज नहीं. दा.त. दूरथी झाडनुं देखीने विचार थाय छे के आ पुरुष छे के ढूंछु ? आवो (इहा) विचार पुरुषने थयो पण लूंठाने न थयो तेथी जीवनो स्वभाव 'विचार' छे. (३) 'जीव' एवो शब्द बोलवाथी ज जीवनुं अस्तित्व साबित थाय छे. आ अनुमान खोटुं नथी कारण के जे अविद्यमान छे तेनो स्वतंत्र शब्द छ ज नहीं. जे केवळ शब्द छे ते पदार्थ अवश्य छे. दा.त. खर विषाण-गधेडाना शींगडा. आ वस्तु एक साथे घटी शके नहीं, कारण के गधेडाने शींगडा होता ज नथी, पण जो खर = गधेडो अने विषाण = शींगडा भिन्न भिन्न शब्दो लईए तो घटी शके. आ असंजोगी शब्द छे, एटले तेनी विद्यमानता न होय. तेवी जरीते आकाशपुष्प आकाश, फूल, आकाश अवकाशरूप होई त्यां कदापि पुष्पोत्पत्ति होई शके ज नहीं. आकाश अने पुष्प भिन्न भिन्न मानीए तो बंने घटी शके. जीव शब्द एकलो ज छे तेथी ते घटी शके छे. (४) शुद्ध घट, पट, खर इत्यादि शब्दोना अनुमानथी जीव छे, तेमां कांई पण विकल्प नथी. घट, पट इत्यादि शब्दो छे तेम निश्चयथी शब्दद्वारा जीवनी सिद्धि थाय छे. (५) आ संबंधमां नास्तिकवादी शंका करतां प्रश्न उठावे छे के-शुद्ध शब्द छे मारे जीवनी सिद्धि करो छो तो पण अमारा शून्य, नष्ट एवा शब्दो पण शुद्ध ज छे, माटे अमारु कथन पण सत्य ज छे. तेनो जवाब आपतां कहे छे के-शून्यने शून्य के नष्टने नष्ट कहीए ते बराबर कहेवाय परंतु जे विद्यमान होय तेने शून्य के नष्ट केम कहेवाय? देवदत्त घरमां न होय त्यारे ते गृह शून्य कहेवाय परंतु ते गृहमां बेठो होय छतां तेने शून्य केम कहेवाय? कोई पण एक स्थळे घडो न होय तो तेने नष्ट कहेवाय परंतु छते घडे नष्ट न कहेवाय. आ नयथी जीव शब्दनं छतापणं होवाथी तेनुं नास्तिपणुं केम कहेवाय? जो जीव न होय तो नास्ति कहेवाय पण वाच्यवाचकभाव छते ते नास्ति न कहेवाय. (६) जो जीव नथी एम मानीए तो परलोकादिक सर्व असत्य ठरे अने ते जूठा होय तो कर्ता अने भोक्ता कोई पण निर्णीत नहीं थाय. (७) जो जीव नथी तो जीवदया पाळवी, विवेक
आचरवो, तपश्चर्या करवी, ब्रह्मचर्य- पालन करवू, दीक्षा ग्रहण करवी तथा इंद्रियोनो निरोध करवो इत्यादि सर्व निर्रथक ज निवडे. (८) पुराणना रचनाराओ, वैद्यो तथा वैदिकमतिओ, त्रिपिटकादि मतधारी अने शैवधर्मी पंडितो कहे छे के-जीव नित्य छे, अनित्य नथी. केटलाक एम पण अभिप्राय धरावे छे के-शरीरथी जीव भिन्न छे. जो जीव न मानो तो ते सर्वना मतमां बतावेल नीचे प्रमाणेजीवनुं लक्षण निष्फळ निवडशे. (९) भगवद्गीतामां जीवने अंगे का छे के-अच्छेद्योऽयमभेद्योऽय-मविकार्योऽयमुच्यते । नित्य: सततग: स्थाणू-रचलोऽयं सनातनः ।। वेदमां पण का छे के-शृगालो वै एष जायते य: सपुरीषो दहते-जे पुरीष सहित बळे छे ते मरीने शियाळ थाय छे. वळी त्रिपिटकमां का छे के-अहमासीत् गज: । एटले हुं हाथी हतो. वळी केटलाक अन्य मतिओ त्रण प्रकार नी (देव, तिर्यंच अने मनुष्य) अने केटलाक चार प्रकार नो (देव, मनुष्य, तिर्यंच अने नरक) संसार माने छे. जो जीव न मानीए तो ऊपर कहेल सर्व दृष्टांतो निष्फळ जाय. (१०) शरीर नो कर्ता अने शरीर थी भिन्न थनार कोई जीव छे. जेम कुंभार घड़ा नो कर्ता छे पण ते बने एक ज नथी. तेवी रीते जीव ज्यारे कर्मथी मुक्त थाय छे त्यारे सिद्ध बने छे. (११) कोई कहेशे के ते केवी रीते जाणी शकाय? अमने जीव तथा शरीर जुदा करी देखाडो. तेनो जवाब आपतां
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २१३