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करतां कहे छ के-तो तमे जीवने जुदो करी बतावा, तेनो उत्तर ए छे के-जेम पांजरामा पक्षी, घड़ामां बोर अने कंचुक (चोळी) थी मानवी भिन्न छ तेम शरीरथी जीव भिन्न नथी तो केवी रीते देखाड़ी शकाय? अनुमानप्रमाणथी ज ते जाणी शकाय. (२) दूध अने पाणी, तिल ने तेल, पुष्प ने सुगंध साथे होवार्थी जेम ते भिन्न भिन्न देखाती नथी तेम जीव अने शरीरनो भेद देखातो नथी. (३) जीवनो संकोच-विकोच एटले ह्रस्व, दीर्घ थाय छे. जरूर पड्ये ते चांदराजलोकप्रमाण विशाळ थई शके छे. कुंथुआना शरीरमां तेना जेवड़ो ह्रस्व अने हस्तिना देहमां तेना जेवड़ो दीर्घ थाय तो पण बंने शरीरमां प्रदेश तो असंख्याता ज छे. (४) जेम काळ अनादि अने अविनाशी छे छतां त्रणे काळ-अतीत, अनागत अने वर्तमान-मां सदा काळ छ तेम जीव अविनाशी अने अनादि होवा छतां हमेश छे. (५) कोई कहे छे के-जीव अरुपी छे, तेने ज्ञान गुणद्वारा जाणी शकाय, दा.त. जेम आकाश अरूपी छे छतां तेनो गुण अवकाश छे तम जीवनो गुण ज्ञान छे. (६) जेम पृथ्वी सर्व द्रव्यना आधारभूत छे एटले रूपी द्रव्यनो आधार पृथ्वी छे तेम ज्ञानादिक गुणसमूहनो आधार जीव छे. (७) जेम अक्षय, अनंत ने निर्मळ आकाश त्रण काळने विषे छे, छे ने छ ज तेवी जरीते त्रण काळने विषे अविनाशी, अवस्थित एवो जीव छे, छे ने छे ज.(८) जीव मृत्यु पामीने जुदा जुदा प्रकारनो केम थाय छे ? तेना खुलासामां जणावे छे के-कोई सुवर्णना कडा, मुकुट, कुंडल विगेरे विविध प्रकारना घाट घडावे पण ते सर्वमां सवर्ण तो तेनं ते ज छे पण रूप-पर्याय नवा थया ते प्रमाण जीव मत्य पामीने नरक गति
तिमां. तिर्यंचपणामां, मनुष्यमां, देवमां, स्त्री, पुरुष, ब्राह्मण, क्षत्रिय-एम विविध प्रकारे उपजे ते तेना पर्यायो समजवा; जीव द्रव्य जे छे ते तो तेनुं ते ज छे; तेमां कई पण फेरफार थतो नथी. (९-१०) जे प्राणी जेवं कार्य करे ते तेवं कर्मफळ भोगवे तेम जीव पण कर्म बांधे तेनो रस-फळ भोगवे. (११) जेम सूर्य दिवसे प्रकाश करीने अस्त थाय अने पछी बीजा क्षेत्रमा प्रकाश करे पण नाश न पामे तेम जीव पण भवांतरमा जईने बीजा शरीर धारण करे छे, पण नाश पामतो नथी.(१२-१३) कोई कहे के-जीवनुं स्वरूप तो देखातुं नथी तेनुं केम? तेनो जवाब ए छे के - कमळ प्रमुखना पुष्पमां, चंदन तथा अगुरु धूपमा सुगंध होवा छतां ते जणाती नथी पण नासिकाद्वारा ते जाणी शकाय छे के-आ अमुक पुष्पनी सुगंध छे तेम बुद्धिवंत पुरुष ज्ञान-गुणद्वारा जीवने जाणी शके. जेम नेत्रथी सुगंध न पारखी शकाय तेम अज्ञानी प्राणी जीवने जाणी शकतो नथी. (१४-१५) भेरी, मृदंग, वीणा, ढोल विगेरे वाजिंत्रोना शब्द संभळाय छे, पण जोवाता नथी. वळी कोई माणसने भूत वळग्युं होय त्यारे ते माणसने आपणे जोईए छीए, भूत-पिशाचने जोई शकता नथी पण मानीए छीए के पुरुषना शरीरमां पिशाच छे तेम इलन चलन श्रासोनास विगरे कारणोथी आपण जाणी शकीए के शरीरमां जीव छे जे दाप्रिथी देखातो नथी.(१६-१७) वळी कोई प्राणी क्रोध करे, नाचे, गाय, रोवे, सुख-दुःख अनुभवे-आ प्रकारनां लक्षणोद्वारा शरीरमा रहेलो जीव जाणी शकाय छे. (१८) जे आहार आपणे करीए छीए ते सात प्रकारे-१ चरबी, २ लोही, ३ हाडकां, ४ मांस, ५ मज्जा, ६ भेद अने ७ वीर्यरूपे परिणमे छे तेवी रीते जीवने आटे कर्म लागेला छे. जेम सुवर्ण अने पाषाणनो संजोग अनादि छे तेम जीव अने कर्मनो संजोग पण अनादि छे. (१९-२०) जो अनादि संजोग छे तो तेने केम दूर करी शकाय? ते प्रश्नो उत्तर आपतां जणावे छे के-जेम पाषाण ने सुवर्णनो अनादि संयोग अग्निद्वारा छूटी जाय छे तेम
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २१६