Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani

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Page 214
________________ हास्य-बीजानो उपहास न करे. चार प्रकारनी विकथा (जुओ पृष्ठ १७)थी विरमेल होय. गुरुनी आज्ञा शिरोधार्य गणे-वगरविचार्ये स्वमतिथी विरुद्ध वर्तन न करे. वळी गोचरी अर्थे योग्य भूमिमां परिभ्रमण करे. आठ प्रकारनी गोचर भूमि कहेल छे, ते आ प्रमाणे- १ ऋज्वी, २ गत्वाप्रत्यागतिका, ३ गोमूत्रिका, ४ पतंगवीथिका, ५ पेटा, ६ अर्द्धपेटा, ७ अभ्यंतरशंबूका अने ८ बहिः शंबूका. वली अनेक प्रकारना अभिग्रहना धारक तेमज महाकठिन प्रायश्चितने लगती तपश्चर्या करनारा होय. आवा आचार-परायण अने संयमी साधुवने जोईने इंद्र सरखा पण चमत्कार पामे तो अन्य जननुं शुं कहेवुं ? अभिग्रह चार प्रकारना छे. १ द्रव्याभिग्रह, २ क्षेत्राभिग्रह, ३ काळाभिग्रह अने ४ भावाभिग्रह. १. द्रव्याभिग्रह - आज मारे लेपवाळा मग विगेरे अथवा लेप (रस) विनाना वाल, चणा विगेरे मळे तो ग्रहण करवा, आजे रोटलो के तेनो मांडो मळे तो ज भिक्षा ग्रहण करवी, कडछी, चमचो अथवा तो भालानी अणीद्वारा कोई वहोरावे त्यारे ज वहोरावुं. श्रीमहावीरस्वामीए जेम सुपडाना खूणामां रहेल अडदना बाकळा ग्रहण कर्यां हता तेम विधविध प्रकारना अभिग्रहो धारण करवा अने ते प्रमाणे ज जो भिक्षा मळे तो ग्रहण करवी, ते द्रव्याभिग्रह कहेवाय. २ क्षेत्राभिग्रह - पूर्वे कही ते आठ गोचरभूमिमां तथा जे गाममां होय तेमां अगर परगाममां अमुक मर्यादा बांधी गोचरी ग्रहण करवी ते क्षेत्राभिग्रह कहेवाय. हवे आठ गोचर भूमिनुं विशेष वर्णन करतां जणावे छे के - १ ऋज्वी एक दिशानो अभिग्रह करीने उपाश्रयमांथी नीकळ्या बाद सीधे मार्गे समश्रेणीमां आवतां गृहोने विषे भिक्षार्थे जतां ते पंक्तिना छेल्ला गृह सुधी जाय. तेटला गृहोमां जो उचित भिक्षा मळी जाय तो ग्रहण करे अने न मळे तो ते ज गतिए पाछा आवे. २ गत्वाप्रत्यागतिका - एक पंक्तिमां भिक्षार्थे फरतां तेना छेल्ला गृह सुधी जाय अने तेम करतां उचित गोचरी न मळे तो पाछा फरतां बीजा घरोनी श्रेणीमां परिभ्रमण करे. ३ गोमूत्रिका - जमणा घरनी पंक्तिमांथी डाबी पंक्तिमा अने डाबीमांथी पाछी जमणी पंक्तिमां तेम एक बीजी पंक्तिमां गोचरी अर्थे फरवुं. चालती गाय अने बळदना मूत्रना आकारे आ गोचरी थती होवाथी तेने गोमूत्रिका कहेवाय छे. ४ पतंगवीथिका-त्रण चार घर मूकीने वहोरे, वळी त्रण-चार घर आगळ जईने वहोरे. पतंगियुं उछळी उछळीने अनिश्चित गति करे छे तेनी माफक आ गोचरी थती होवाथी तेने पतंगवीथिका कहेवाय छे. ५ पेटा-पेटीना आकारे गोचरी करे ते पेटा. पेटीना चार खूणानी माफक चारे दिशाना गृहोने विषे जाय परंतु ते दिशाना मध्यमां रहेला गृहोने विषे न जाय. ६ अर्द्धपेटा - चार दिशाने बदले बे दिशाने निश्चित करीने भमे पण तेनी मध्यमां आवतां गृहोमां न जाय. ७-८. अभ्यंतरशंबूका ने बहि:शंबूका - शंखनी पेठे जे गोचरी करवी ते शंबूका. • शंखना मध्य भागना आवर्तनी माफक गोचरी करवी एटले मध्य घरोमां भमतां भमतां क्षेत्रना बहारना भागमां आववुं ते अभ्यंतरशंबूका अने क्षेत्रना बहारना भागमांथी गोचरी ग्रहण करता करतां मध्य भागमा आव ते बहि:शंबूका. वळी 'घरना उंबरा मात्रमां होय तो मारे गोचरी लेवी.' एवी जातनो पण अभिग्रह लेवो तेनो क्षेत्राभिग्रहमा समावेश थाय छे. श्रीमहावीर परमात्माए आवो अभिग्रह धारण कर्यो हतो अने एक पग उंबरमा अने एक पग बहार राखेल राजपुत्री वसुमती उर्फे चंदनबाळाए आ अभिग्रहण पूर्ण कर्यो हतो. वळी पोताना गाम संबंधी पण धारवुं के मारे अमुक संख्याना घरमा श्रीगच्छाचार - पयन्ना - १९९

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