Book Title: Gacchayar Ppayanna
Author(s): Vijayrajendrasuri, Gulabvijay
Publisher: Amichand Taraji Dani
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जाप करवामां आवे तेम तेम विद्या विशेष अभ्यस्त (ताजी) थवाथी गति वधे छे एटले प्रथम गति विसामावाळी होय छे अने स्वस्थानक तरत पाछा वळतां बीजी गति विसामारहित होय छे. वळी पद्मासनथी के कायोत्सर्गासनथी शरीरने हलाव्या विना आकाशमा उडवानी शक्तिवाळा व्योमचारण कहेवाय छे. आ उपरांत बीजा पण घणा भेदो छे. कां छे के- जल १ जा २ फल ३ पुष्प ४ पत्र ५ श्रेण्य ६ ग्निशिखा ७ धूम ८ नीहारा ९ वश्याय १० मेघ ११ वारिधारा १२ मर्कटकतन्तु १३ ज्योतीरश्मि १४ पवनाद्यलम्बनगतिपरिणामकुशलाः १५ । (१)जळचारण-वाव, नदी, सरोवर अने समुद्र विगेरे जळाशयोमां अप्कायनी विराधना कर्या विना जेम भूमि ऊपर पग उपाडीने मूकीने चाले तेम जळमां (जळनी सपाटी ऊपर) पग उपाडीने चाले. (२) जंघाचारण-भूमि ऊपर चार आंगळ ऊंचा रहीने चालवानी शक्ति. (३) फळचारण-अनेक प्रकारनां वृक्षो ऊपर रहेलां फळोने अवलम्बीने चालवा छतां फळना जीवने अंशमात्र बाधा न पहोंचे. (४) पुष्पचारण-अनेक वृक्षादिकनां फूलो ऊपर पग मूकीने चालवा छतां पुष्पना जीवने कंई पण पीडा न थाय. (५) पत्रचारण-पत्रो (पांदडा) ऊपर पग मूकीने चालवा छतां कष्ट न थाय. (६) श्रेणिचारण-चार सो योजन ऊंचा निषध अने नीलवंत पर्वतनी टंकछिन्न श्रेणिओना अवलंबनवडे (विषम टेकरीओ अने महाशिलाओने अवलंबीने) पग मूकीने चढे तेमज उतरे. (७) शिखाचारण
अग्निनी ज्वाला पर पग मूकीने आकाशमां गमन करे तो पण अग्निकायना जीवने परिताप न थाय तेमज मुनिने दाह पण न थाय.(८) धूमचारण-धूमाडो ऊंचो जाय, तिच्छ• जाय तो पण तेने अवलंबीने आकाशमां अस्खलित गति करी शके. (९) नीहारचारण-धूमस के जे जळगें रूपान्तर छे तेने अवलंबीने अप्कायना जीवने किलामणा कर्या सिवाय विचरी शके. (१०) अवश्यायचारण-झाकळना पाणीने अवलंबीने दुःख उपजाव्या सिवाय आकाशमां विचरी शके. (११) मेघचारण-आकाशमां चढी आवेला पाणीवाळा वादळाना अप्कायना जीवोने कष्ट उपजाव्या सिवाय आकाशमां विचरी शके. (१२) वारिधाराचारण-वरसाद वरसतो होय त्यारे पण जळवृष्टिना अपकायना जीवने उपद्रव कर्या सिवाय विचरी शके. (१३) मर्कटतंतुचारण-वांका-तेडा वृक्षोना आंतराओमां करोळिया जे जाळ गूंथे छे ते जाळ ऊपर पग मूकीने चालवा छतां तेनो एक तांतणो पण तूटे नहि-तेवी रीते आकाशमां गमन करी शके (१४) ज्योतिरश्मिचारण-चंद्र, सूर्य, ग्रह नक्षत्र अने तारा विगेरेना किरणोनुं अवलंबन लई आकाशमां विचरी शके. श्रीगौतमस्वामी आ लब्धिप्रभावथी अष्टापद पर्वत ऊपर चढ्या हता ते प्रसिद्ध ज छे.(१५) वायुचारण-वायु ऊर्ध्व वातो होय, तिच्छों वातो होय, उत्कृट गतिए वातो होय, सीधी गतिए वातो होय के कोई पण दिशामां वातो होय ते दिशानी वायुश्रेणिने अवलम्बीने वायुकाय जीवनी विराधना कर्या विना विचरी शके. श्रीसमवायांग सूत्रमा का छे के-चारण मुनिओ कंईक अधिक सत्तर हजार योजन ऊर्ध्व गति करीने पछी तिर्छा गति कर. का छे के-“इमीसेणं रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ साइरेगाइं सत्तरसजोअणसहस्साइंउड्ढं उप्पइत्ता तओ पच्छाचारणाणं तिरियगती पवत्तति त्ति० १० ११ आशीविषलब्धि मुनिना दांत-दाढोमां झेरना जेवी शक्ति उत्पन्न थाय छे.
श्रीगच्छाचार-पयन्ना-१९१

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