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हणी रह्या छे, एटले के जेटला पाखंडी मिथ्यात्वी लोको छे तेज छक्कायना हणनारा छे. आ प्रमाणे आ सूत्रनो अर्थ होवा छतां तेनो विपरीत अर्थ करता कहे के - अवंतीदेशमा जे लोको छे ते एकबीजाथी दूर रहे छे. आ प्रमाणे ऊलटो अर्थ करे तो दोष लागे. ८. तदुभय - सूत्र अने अर्थ बनेनो विपरीत अर्थ करे. दा. त. धर्मो मङ्गलमुत्कृष्टः, अहिंसापर्वतमस्तक- एटले धर्म ए उत्कृष्ट मंगल छे
अने अहिंसा ते पर्वतमस्तक (शिखर) छे. आमां बनेनो भेद (फेरफार) कई रीते थयो ते आपणे तपासीए. प्रथम तो पाद प्राकृत होवा छतां तेने फेरवीने संस्कृतमा का अने अर्थ पण शुद्ध संस्कृत कहेवाथी पाठभेद थयो. बीजा पादमां पाठभेद अने अर्थभेद बंने छे माटे कदापि आ प्रमाणे फेरफार न करवो; कारण के व्यंजननो फेरफार थाय एटले अक्षर फरी जाय, अक्षर फरी जाय एटले अर्थ फरी जाय अने आ प्रमाणे अर्थभेद थाय तो क्रियाभेद पण थाय, क्रियामा परिवर्तन थतां मोक्षनो अभाव थाय, मोक्षनो अभाव थतां संयम - ग्रहण निष्फळ नीवडे. आ प्रमाणे परंपराए आचारहीन बनी जवाय, केवलिभगवंतभाषित मार्गना लोपक थई जवाय अने महापातक लागे माटे कदापि अर्थ तथा सूत्रनो भेद न करवो.
दर्शनाचार पण आठ प्रकारनो कह्यो छे–“निस्संकिय १ निक्कंखिय २ निव्वितिगिच्छा३ अमूढदिट्ठी अ४ । उववूह ५ थिरीकरणे ६, वच्छल्ल७ पभावणे ८ अट्ठ ॥२॥" १. नि:शंकित - देशशंका अने सर्वशंका रहित. देशशंका एटले जीव तो बधा सरखा छे, तो सूत्रमा भव्य अने अभव्य एम वे प्रकारना जीवो केम कह्या ? सरखा स्वरूपमां भेद न होवो घटे-आ प्रमाणेनी जे शंका ते देशशंका कहेवाय. शास्त्रकार कहे छे के - आ देशशंका न करवी, कारण के जीवनुं लक्षण तो एक ज छे परंतु स्वभावनुं विचित्रपणुं होवाथी भव्य अने अभव्य बने प्रकार घटी शके छे. स्त्रीओ घणी होय परंतु केटलीएक वांझणी होय छे ज्यारे केटलीएक संतानवाळी होय छे. सर्वशंका एटले शुं? ते दर्शावतां कहे छे के-जैनसूत्रो तो बधा प्राकृत भाषामां छे माटे कोण जाणे कोणे ते बनाव्या हशे? ठंडा प्रहरना गपाटा लागे छे. शास्त्रमा जणावेल अंगुलना असंख्यातमां भागनुं शरीर, समयप्रमाण इत्यादिक बुद्धिमां न उतरे तेवी हकीकत छे-आवी शंका ते सर्वशंका कहेवाय. आवी शंका कदापि न करवी, केम के तेम करवाथी जैनशासन परत्वेनो प्रेम अलोप थई जाय छे. वळी विचारवं के-गणधरमहाराजाओ परोपकारी अने एक मात्र परहित साधवामां तत्पर हता. तेमने अंशमात्र पण स्वार्थ न हतो. तेमणे जाण्यु के संस्कृत भाषा बालजनोने, स्त्रीवर्गने, मंदबुद्धिवाळा तेमज अल्पबुद्धिवाळा प्राणिओने समजवामां कठिन पडशे-आवडशे नहीं माटे सुगम एवी प्राकृत भाषामां ज सूत्रग्रंथोने गुंफित कर्या. संस्कृतभाषाना तो तेओ पारंगत हता परंतु आ उपकारक बुद्धि लक्षमा राखीने ज तेओए प्राकृतभाषामां ज सूत्ररचना करी छे. वळी देशशंका अने सर्वशंका बीजी रीते पण जणावतां कहे छे के-पाणीमां असंख्याता जीव कह्या छे ते हशे के नहीं ? एवी शंका ते देशशंका अने जैनधर्म आ ज छे के बीजो पण हशे? एवी शंका ते सर्वशंका जाणवी. आ बने प्रकारनी शंकाओ रहित जीव अरिहंत परमात्मानुं शासन पामीने दर्शनाचार- शुद्ध रीते आचरण करी शके
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- १०२