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लागे. पुरुषविपर्यय पण न करवो, तेनो क्रम नीचे प्रमाणे छे-१ प्रथम गुरुना उपकरण पडिलेहे, २ तपस्वीना, ३ ग्लान साधुना, ४ अने पछी शिष्यादिकना. आ पडिलेहण-सामाचारीमा विराधना करे तो तीर्थंकरनी आज्ञानो विराधक कहेवाय माटे प्रथम पडिलेहण-सामाचारी यथायोग्य समजी लेवी. २ प्रमार्जना-पडिलेहण करीने प्रभाते वसति पूंजवी अने दिवसना चोथा प्रहरे प्रथम वसति पूंजवी अने पछी पडिलेहणा करवी. आप्रमार्जना चीकणा डंडासनथी न करवी. पछी काजो बराबर तपासवो. जो आ प्रमाणे प्रमार्जना न करे तो लोकमां निंदा थाय, जीवघात थाय, धूळनी वृद्धि थवाथी कपडा मेला थाय अने प्रक्षालननो आरंभ वधे वि. आत्मविराधना थाय. ३ भिक्षा-विधिपूर्वक पात्रा पडिलेहीने गोचरी अर्थे जाय. आ विधि पंचवस्तुक ग्रंथमां आपी छे एटले ते स्थळेथी जाणी लेवी. ४ ईर्यापथिकी-सूत्रना उच्चारपूर्वक कायोत्सर्ग करे. आ संबंधी पण विशेष विधि पंचवस्तुक ग्रंथमां जणावेल छे. ५ आलोचन-गोचरी लाव्या बाद अमुक अमुक स्थळेथी आ भिक्षा मळी छे. ते प्रमाणे गुरुमहाराजने जणावq. ६ भोजन-आ विषय तो प्रसिद्ध ज छे. ७ पात्रकधावन-पात्र विगेरे साफ करवा. ८ विचार-स्थंडिल विधिपूर्वक जाय. ९. स्थंडिल-स्थंडिल जवा माटे जीवरहित तेमज ज्यां बीजानुं अनागमन संभवे तेवी भूमि पसंद करवी. १० आवश्यक-प्रतिक्रमण विगेरे आवश्यक अवश्य करवां आवश्यक संबंधी सविस्तर वर्णन पंचवस्तक ग्रंथना बीजा द्रारमा जणावेल छे. आवश्यक एटले अवश्य करवा योग्य कार्य, अथवा आत्माने गुणथी वासित करे. आवश्यक संबंधी श्रीअनुयोगद्वार सूत्रमा स्वरूप वर्णव्युं छे, ते आ प्रमाणे-१ नाम आवश्यक, २ स्थापना आवश्यक, ३ द्रव्य आवश्यक अने ४ भाव आवश्यक. १ नाम आवश्यक-कोई पण जीव अथवा अजीवन, घणा जीवोनुं अथवा अजीवोनु, आवश्यक एवं नाम. २ स्थापना आवश्यकना दश भेदो छे. (१) काष्ठ (लाकडा)ने कोरीने साधु प्रमुखनुं स्वरूप दर्शावे, २ चित्रकर्म-साधु प्रमुखD चित्र आलेखे, (३) पोतकर्म-वस्त्रना छेडा प्रमुख वाळीने ढींगली प्रमुखनो आकार दर्शावे, (४) लेपकर्म-लेप करीने मूर्ति विगेरेनो आकार दर्शावे, (५) ग्रंथिम-चतुराईथी गुंथीने आकार दर्शावे दाखला तरीके पुष्पनी ज माळा. (६) वेष्टिम-पुष्प वीटीने अगर तो एक बे या त्रण वस्त्रो वीटाळीने कोई स्वरूप दर्शावे. (७) पूरिम-भरतचक्रवर्ती विगेरेए भरावेली पीतळनी मूर्ति विगेरेनी स्थापना (८) संघातिम-घणा वस्त्रना टुकडा एकठा करीने बनवायेल कंचुक (चोळी)नी जेम, (९) अक्ष-चंदनकनुं अक्ष एवं नाम स्थापq अने (१०) वराटक-कोडियानी स्थापना. आ प्रमाणे बीजा स्थापना आवश्यकना दश प्रकार दर्शावेल छे. मतांतरे दंतकर्म विगेरे स्थापना पण जणावेल छे. आ काष्ठकर्म विगेरे भेदोनी सन्मुख स्थापना स्थापीने जे क्रिया करे ते संबंधमां स्थापना बे प्रकारनी समजवी. १ सद्भावस्थापना अने २ असद्भावस्थापना, ते आ प्रमाणे समजवु-काष्ठ प्रमुखमां साधुनो आबेहुब-साक्षात् आकार कोतरे ते सद्भावस्थापना कहेवाय अने अक्षमा साधुना अवयवोनी आकार नथी तेथी ते असद्भावस्थापना कहेवाय. हवे प्रतिवादी पूछे छे के-नामआवश्यक अने स्थापनावश्यकमां विशेष तफावत शो छे? तेनो उत्तर ए छे के-नाम तो यावत्कथिक एटले सर्वकाळ रहेनारुं छे अने स्थापना तो अल्प समयनी पण होय अने सर्व काळनी पण होय. दाखला
श्रीगच्छाचार-पयन्ना-१६२