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अशुचि दूर करवाथी जीव विघ्न रहित स्वर्ग प्राप्त करे छे.” आ प्रमाणे शुक परिव्राजकनो उपदेश सांभळी सुदर्शन शेठ अत्यंत प्रमोद पाम्यो अने परिव्राजकनो धर्म स्वीकार्यो, केटलाक समय बाद शुक परिव्राजक अन्य स्थळे गयो अने थावच्चा अणगार विचरतां विचरतां हजार मुनिओ साथे सोगंधिया नगरीए आव्या. तेने नीलाशोक नामना उद्यानमां उतरेला जाणीने पौरलोको साथे सुदर्शन श्रेष्ठी पण वंदनार्थे आव्यो. त्रण प्रदक्षिणा आपी, मुनिवरने वांदी बेठो अने देशना सांभळ्या बाद प्रश्न कयों के“हे भगवन् ! तमारो मूळ धर्म शुंछे?" थावच्चा अणगारे जवाब आप्यो के–“हे महानुभाव ! अमारो मूळ धर्म विनय छे. तेना बे प्रकार छे–(१) गृहस्थनो धर्म पांच अणुव्रत, त्रण गुणव्रत अने चार शिक्षाव्रत ए प्रमाणे बार व्रतरूप तेमज अग्यार उवासगपडिमारूप छे अने (२) साधुनो पांच महाव्रतरूप, अढार पापस्थानकना परित्यागरूप तेमज बार पडिमारूप विनय धर्म छे. आ बंने प्रकारनो धर्म सेवे ते आठ* कर्मनी एकसो अट्ठावन प्रकृतिनो विनाश करी शिवसुखनी प्राप्ति करे." आ प्रमाणे कहीने थावच्चा अणगारे सुदर्शन शेठने प्रश्न कर्यो के–“हे श्रेष्ठी ! तमारो मूळ धर्म शुं छे?" त्यारे श्रेष्ठीए का के-“मारो मूळ धर्म शौच छे.” एटले थावच्चा अणगारे का के–“हे देवानुप्रिय ! कोई माणस लोहीथी खरडायेला वस्त्रने पुन: लोहीमा झबोळी धोवे तो ते शुं शुद्ध थाय?” सुदर्शन का –“ना” एटले थावच्चा मुनिए जणाव्युं के–“अढार पापस्थानकद्वारा बांधेल कोने काचा पाणी प्रमुखना जीवोनी हिंसा करीने दूर करवाने इच्छे ते बनी शके खरुं? लोहीथी आर्द्र बनेला वस्त्रने जेम स्वच्छ जळ अथवा तो क्षारादिकथी धोवामां आवे तो ते शुद्ध बने तेम अढार पापस्थानकवडे उपार्जेल कर्मनो क्षय करवा माटे अहिंसादिक क्रिया अने तपश्चर्यादि करवा जोईए. पाणी तो बहारना मळने पण पूरेपूरुं दूक करी शकतुं नथी तो आत्माने लागेला कर्मनो नाश केवी रीते करी शके?” आ प्रमाणे थावच्चा अणगारनो सचोट उपदेश सांभळतां सुदर्शनने पोतानी भूलनुं भान थयु. पोते खोटे मार्गे प्रयाण कर्यु छे अने तेथी तो साध्यनी उलटी ज दिशा ग्रहण कराई छे तेवो तेने ख्याल आव्यो. पूर्व दिशामां गमन करवू होय अने पश्चिममां चालवां मांडे तो ते कदि पण इष्ट स्थळे पहोंची शके नहीं तेम विचारीने सुदर्शन श्रेष्ठीए विपरीत मार्गरूप शुक परिव्राजकना पंथनो त्याग कर्यो अने थावच्चा मुनि पासे केवलीभाषित जैनधर्मनो स्वीकार को. समकितना मूळरूप श्रावक धर्म ग्रहण कर्यो अने जीवाजीवादी नव तत्त्व- स्वरूप जाण्यु.
आ हकीकत शुक परिव्राजकना कणे अथडातां ते स्वयं सोगंधिया नगरीए आव्यो अने सुदर्शन श्रेष्ठीने आवासे गयो. शुद्ध सम्यक्त्वधारी सुदर्शन शेठे तेनो आदर सत्कार पण न कों तेम तेने वंदना पण न करी त्यारे शुक परिव्राजके तेने का के- “हे श्रेष्ठिन् ! पहेलां तो तुं अमारी अत्यंत भक्तिभावपूर्वक सेवा-शुश्रूषा करतो अने तारामां आ परिवर्तन केम थई गयुं ? शुं तने मारो धर्म रुच्यो नहीं?" त्यारे शेठे कां के “हे परिव्राजक ! श्रीनेमिनाथ भगवंतना शिष्य थावच्चा
___ *ज्ञानवर्णीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, नाम, गोत्र, आयु अने अंतराय-ए प्रमाणे आठ प्रकारना कमों छे. तेना क्षयथी प्राणी सिद्धिगति प्राप्त करे छे.
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- २९