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गौतमस्वामी जेवो कई रीते बर्नु ? श्रेष्ठ पंक्तिना विचारो करवामां कईं मुश्केली नथी, हवाई तरंगो तो मन कल्प्या ज करे छे परंतु तेनो अमल करवामां ज मानवनी महत्ता छे. श्रीगौतमस्वामी जेवा बनवानो विचार करवामां कईं मुश्केली नहोती परंतु चारित्र स्वीकारी, शुद्ध रीते तेनुं पालन करी, साधुजीवनना परीषहो सहन करी तेमना जेवा थq ए कई नानीसूनी वात नहोती. परंतु मक्कम मन शुं नथी साधी शकतुं ? मनना आवेग ने आवेगमां अतिमुक्तक ऊभो थयो अने शीघ्र गतिए श्रीगौतमस्वामीनी पाछळ गयो. तेमने पोतानी चारित्र स्वीकारनी मनोभावना जणावी. श्रीगौतमस्वामी तेने प्रभु श्रीमहावीर समीपे लई गया. प्रभुए मात-पितानी संमति लई आववा कॉ. अतिमुक्तके मातपिता पासे आवी सर्व हकीकत जणावी पोतानी मागणी मूकी के–“मने परमात्मा श्रीमहावीर देव पास प्रव्रज्या अपावो.” । ___ मात-पिताने मन अतिमुक्तकनी मागणी धरती कंपना आचंका जेवी हती. विद्युत्पात क्षणमात्रमां बाळीने भस्म करी मूके तेम राजकुमारना आ विचारथी राजदंपतीनो आशा - महेल भांगीने भूक्को थई जतो हतो. एकना एक लाडकवाया पुत्र पर तेमणे केटलाय मनोरथ-महेल चण्या हता; ज्यारे पुत्रनी दिशा तो अनोखी ज मालूम पडी. संस्कारसंपन्न राजवीने आना कानी करवानुं कईं कारण नहोतुं, ऊलटुं पुत्रना आसन्नसिद्धित्व अने पूर्वसंस्कारित्वमाटे मान उपज्युं हृदय प्रसन्नता अनुभववा लाग्युं छतां पुत्रनो संयम-रंग पतंगना रंगजेवो क्षणजीवी छे के मजीठना रंग जेवो दृढ छे ते तपासवा माटे तेमणे कां के ___ "वहाला पुत्र ! आ तुं शुं बोले छे ? अंधपुरुषनी लाकडी समान अने निराधारना आधार तुल्य तुं अमारो लाडकोडमां उछरेलो एकनो एक ज पुत्र छे. तुं तो अमारी आंखनी कीकी. कीकी नष्ट थई जतां जेम आंख निरुपयोगी थई जाय छे तेम तारा विना अमने पण आ राज्यवैभव नकामा थई पडशे. अमारी वृद्धावस्थामां पण तारा सिवाय अमारी सारसंभाळ कोण लेशे? आ विशाळ राज्य अमे कोने सुप्रत करशुं? दीक्षाग्रहणनो समय अमारो छे के तारो? तेनो तो जरा विचार कर. अमारा केश श्वेत थया छे अने तुं तो विकास पामता कुसुम सरखो छे माटे उतावळ न कर. आ राजवैभव भोगवीने पछी तारुं मनोवांछित साधजे." ___ “वहाला जनक तथा जननी ! विशिष्ट ज्ञान वगर केम जाणी शकाय के तमे वृद्ध छो अने हुं बाळक छु ? शुं यमराज केश- श्वेतपणुं निरखी आमंत्रण मोकले छे? चक्षु सामे आपणे जोई रह्या छीए के पग जेना शक्तिहीन थई गया छे, नेत्र जेना वही रह्या छे अने गात्र जेना गळी जवा लाग्या छे एवा वृद्धने पडतो मूकी, जेने संसारने निहाळ्या पूरा पांच चोमासा पण नथी थया, अरे ! जेना केशनी काळाश पण मनोहरताने धारण करवा लागी होय छे अने जे हजु दुनिया कई चिडियानुं नाम छे ए जाणतो पण नथी एवा अर्भकने शुं यमराज नथी उपाडी लेतो? माटे ज नाना-मोटाना के वयना विचार नकामा छे.
वळी पूज्य पिताश्री ! विचारो के कोण पुत्र छे ने कोण माता के पिता छे ? संसारभ्रमणमां आ जीवने एवा केटलाय संबंधो थई गया तेनी कईं नोंध छे ? आ जे माता छे ते भूतकाळमां पिता,
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- ११