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कादवथी खरडायेल होय, ऊंदरे करड्या होय, कंसारीए खाधा होय, अग्निथी बळी गया होय, तूटी गया होय, धोबीवडे धोवाता छिद्र पडी गया होय, जीर्ण (जूना) थई गया होय, अथवा जाडो धागो (दोरो) आवी गयो होय तो तेना शुभ या अशुभ विविध प्रकारनां फळनी प्राप्ति थाय छे. तेना फळ-स्वरूपनुं दिग्दर्शन करावतां जणावे छे के–“दिव्वेसु उत्तमो लाभो, मणुस्सेसु अमज्झिमो । असुरेसु अ गेलन्नं, मज्झे मरणमाइसे ॥ १ ॥" अर्थ – देव संबंधी विभागमां जो वस्त्र अंजनादिवडे खरडायु होय अगर तो ऊंदर विगेरेवडे करडायुं होय तो (चारित्रपालननो) श्रेष्ठ लाभ थाय, मनुष्य संबंधी विभागमां ते प्रमाणे बन्युं होय मध्यम-अल्प लाभ थाय अने असुरना विभागवाळा विभागमां ते प्रमाणे बन्युं होय तो व्याधि उद्भवे, बीमारी आवे, अनेक प्रकारनां रोगो थाय. जो मध्यनो राक्षसवाळो विभाग ते प्रमाणे खरडायो के करडायो होय तो ते वस्त्र पासे राखवाथी अवश्य मृत्यु ज थाय. एटले साधुए नव भाग पैकी असुरना बे अने राक्षसनो एक एम त्रण भागथी दूषित वस्त्र ग्रहण न करवू. कदापि कोई साधु आq वस्त्र स्वीकारे तो तेने संपूर्ण चारमासी-प्रायश्चित आवे, कारण के तेवो साधु आत्मानी विराधना करनारो तेमज श्रीजिनेश्वर भगवंतनी आज्ञानो भंग करनारो थाय छे, माटे निर्दोष, शुद्ध अने सुलक्षणवाळु वस्त्र ज ग्रहण करवू.
वस्त्र संबंधी विशेष समजण आपतां शास्त्रकारमहाराजा पुन: जणावे छे के-आखं वस्त्र न ग्रहण करवं. कृत्स्न (आलु) वस्त्र चार प्रकार- कहेलुं छे, ते आ प्रमाणे – १ द्रव्यकृत्स्न, २ क्षेत्रकृत्स्न, ३ काळकृत्स्न अने ४ भावकृत्स्न. १. द्रव्यकृत्स्न-बंने बाजुना छेडा दशीयुक्त एटले संपूर्ण तेमज प्रमाणथी अधिक होय. २. क्षेत्रकृत्स्न- जे क्षेत्रमा वस्त्र अति किंमती तेमज दुर्लभ होय. ३. काळकृत्स्न- अमुक अमुक काळमां माग्युं वस्त्र न मळे अथवा तो दुर्लभ होय. जेमके उनाळामां काषायिक-रंगेलुं वस्त्र दुर्लभ होय. शीत ऋतुमां कंबल-धाबळादिक दुर्लभ होय तेमज वर्षाऋतुमां केशरमिश्रित-रंगित वस्त्र दुर्लभ होय. ४ भावकृस्नना बे प्रकार छ (१) वर्ण अने (२) मूल्य. वर्ण एटले पांच प्रकारना वर्णवाळु; जेमके मयूरनी ग्रीवा-डोक सरीखं श्यामवर्णी, पोपटनी पांख सरखं नीलवर्णी, इंद्रगोपकनी जेवू रक्तवर्णी, सुवर्ण सरखं ते पीतवर्णी अने शंख सरखं ते श्वेतवर्णी आ प्रमाणे जो वर्णकृत्स्न अने द्रव्यकृत्स्न वस्त्र साधु स्वीकारे तो ते साधुने उत्कृष्ट चार लघुमासी, मध्यम एक लघुमासी अने जघन्य पांच कल्याणकोनुं प्रायश्चित आवे. मूल्यकृत्स्ननां पण त्रण प्रकार छे– (१) जघन्य, (२) मध्यम अने (३) उत्कृष्ट अढार रुपियानी किंमतनुं होय ते जघन्य, एक लाख रुपियानी किंमतनुं होय ते उत्कृष्ट अने ते बंनेनी वचगाळानुं एटले के अढार रुपिया करतां वधारे अने लाख रुपिया करतां न्यून किंमतनुं होय ते मध्यम जाणवू. हवे आरुपियो केवा प्रकारनो जाणवो ते संबंधे जणावे छे के-द्वीप संबंधी बे रुपियानो उत्तरापथनो एक रुपियो जाणवो. ए रुपियो पाटलिपुत्रनो जाणवो. दक्षिणापथना बे रुपियाना कांचीपुरीना एक रुपियो थाय अने कांचीपुरीना बे रुपियानो पाटलीपुत्रनो एक रुपियो थाय. आ रुपिया आश्रयीने किंमतनो संबंध जाणवो. हवे आ प्रमाणे ओछी-वधती किंमतनुं वस्त्र साधु स्वीकारे तो तेने केटलो केटलो दंड आवे ते जणावतां कहे छे के अढार रुपियानी किंमतनुं वस्त्र साधु स्वीकारे तो लघुमास प्रायश्चित आवे, वीश रुपियानुं ले
श्रीगच्छाचार-पयन्ना- ६४