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२. भोजनकथा - चार प्रकारना आहार छे. अशन, पान, खादिम अने स्वादिम. तेने लगता गुण अथवा अवगुण वर्णवे ते भोजनकथा; जेमके खीरमां खांड अने घी पूरता प्रमाणमां नाख्या होय तो अमृत समान स्वादिष्ट लागे छे. पूरणपोळीमां अंबरस तथा मसालो सारो नाख्यो होय तो तेनो स्वाद कदी भूलातो नथी. कळीना लाडु, मेसुब तथा मोहनथाळ विगेरेना ज़मणमां बे-चार शाक अने जुदा जुदां रायतां कर्यां होय तो श्रेष्ठ भोजन गणाय छे. घेवर तथा मालपूडानुं भोजन, उत्तम छे. आ प्रमाणे विधिविध पकवानोना नामनिर्देशपूर्वक प्रशंसा करे अगर तो निंदा करतां कहे के - अमुक व्यक्तिना जमणवारमां कांई मजा ज नहीं, स्वाद विनानुं जमण, मरचा, मीठं अने मसालो पूरता प्रमाणमां नहीं, कढीमां खटाश ज नहीं, चटणी, रायतुं विगेरे कर्या ज नहीं आ प्रमाणे निंदा करे ते पण विकथा ज
छे.
साधुओ जो आ प्रमाणे भोजनकथा करे तो आहारनी लालसा वधे, रसनेइंद्रिय वधु सचेत थाय, छक्कायनी विराधनाना अनुमोदक थाय तेमज स्वाध्याय-हानि के संयमहानि थाय ते वधारामां. आ उपरांत लोकोमां अपवाद थाय ते जुदो. सांभळनार लोक कहे के 'साधु थया छे पण खावानी - पीवानी तृष्णा शमी नहीं. स्वादिष्ट भोजन करवा माटे ज साधुनो भेख लीधो जणाय छे. इत्यादि इत्यादि. ' स्वहित इच्छुक साधुओए आ भोजनकथानो पण परित्याग करवो.
३. देशकथा - कोई पण देशनी प्रशंसा अथवा अपभ्राजना न करवी. मालव देश तो मनोहर छे, सारा सारा धान्य त्यां निपजे छे. कडंब देशना लोकोनुं शुं वर्णन करवुं ? ते लोको तो महाबुद्धिनिधान ने डाह्या छे. गुर्जरदेशना लोको तो उद्भटवेषधारी छे, कपटी छे, लाट देशना . लोको तो पशु जेवा जड छे, काश्मीर देशना लोको बहु सुखी अने सौंदर्यशाळी होय छे, कामरु देशना लोको अत्यंत रूपवाळा होय छे-आ प्रमाणे देश ना गुणावगुण कहेवा नहीं.
साधु जो आ प्रमाणे देशकथा करे तो पोताना परिवारमां ते ते देश ना साधुओ होय तेने खराब लागे, अथवा ते ते देश ना लोको सांभळे तो आवी वात करनार साधु ऊपर द्वेष उत्पन्न थाय, तेओनुं मन तेमना ऊपरथी उतरी जाय, अरस्परस एकबीजा देशवाळाने क्लेश थाय माटे आ विकथान त्याग करवो.
४. राजकथा- राजानी प्रशंसा अथवा निंदा न करवी. आ राजा तो पराक्रमी छे. भीम जेवुं तो तेनुं बाहुबळ छे. प्रजा पर युधिष्ठिरनी माफक वात्सल्य धरावनार छे. शत्रु लोको तेमज चोरोने दंड आपवामां अतीव कुशळ छे. तेनुं तेज इन्द्र जेवुं छे, राजनीतिमां विचक्षण छे. अगर तो निंदा करतां कहे के - आ राजा तो दुष्ट छे, परस्त्रीलंपट छे, प्रजा पासेथी कर-वेरा ले छे, तेनुं मुख तो कागडा जेवुं श्याम छे, शरीर कदरुपुं छे. शत्रुने आवतो सांभळीने किल्लामां भराई जाय छे, कायर छे, काचा काननो छे, विषयासक्त छे विगेरे विगेरे.
आ प्रमाणे बोलवाथी लोको जाणे के आ साधु राजाना छिद्र जोनार छे, कोई राजानो आ गुप्त . चरपुरुष छे. वळी राजा जाणे तो कोपायमान थाय. कदाच आ प्रमाणे राजानुं वृत्तांत सांभळीने राजसुख इच्छुक कोई पण व्यक्ति पर भवमां राजा थवानुं नियाणुं पण करे. साची खोटी वात थवाथी
श्रीगच्छाचार- पयन्ना- ५४