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अ०४:पजीवनिका विविध-त्रिविध मनोवचन-तन, से न करता- उम्र-भर----- ... - नहीं करवाता व अनुमोदन न करता, आर्यवर ॥५३॥ 'पूर्वकृत का, प्रतिक्रमण निन्दा व... गर्दा कर, रहा। . ... .... . . ., आत्म का व्युत्सर्ग कर भगवन् ! सतत अघ्र हर रहा ।।५४।। पाँचवें इस मावत... से हूँ उपस्थित आप से। .. .. .....सव, परिग्रह छोड़ कर प्रभु मुक्त हू सताप से ॥५५।। बाद इसके : रात्रि-भोजन विरति व्रत . छठा कहा। - : 11 HIT सर्वथा मैं रात्रि-भोजन अहो, भगवन् ! तज-- रहा ॥५६॥ अशन पानी -खाद्य स्वाद्यक.. रात्रि. मे.. खाऊँ नही । .. -... 1. और न खिलाऊँ व खाते. को भला समझू नही ॥५७।। 'त्रिविध-त्रिविध मनोवचन तन से न, करता, उम्र-भर ।.. .....
1 : 1 -- नही करवाता व अनुमोदन न करता. आर्यवर ॥५॥ 'पूर्वकृत का , प्रतिक्रमण निन्दा व गर्दा कर रहा। ...आत्म का व्युत्सर्ग कर भगवन् । सतत अघ हर रहाँ ।।५।। उपस्थित इस छठे व्रत मे, मैं हुआ हूँ आप से। .. ... रात्रि भोजन सर्वथा तज मुक्त हूँ . संताप से ॥६०॥ महाव्रत ये पाँच फिर निशि-मुक्ति-विरमण व्रत यही। 11. आत्म-हित स्वीकार करके मैं विचरता हूँ सही ॥६१।। साधु-साध्वी गण सुसंयत..विरत प्रतिहत-अघ सदा । . 1170 और प्रत्याख्यात-पापाचरण." रहता सर्वदा ॥६२।। दिवस मे,, निशि मे, अकेला --और-परिषद मे कदाः। -- 13, CET नीद . मे -- सोया हुआ, या जागता रहता- यदा ॥६३॥ भूमि, भित्ति, शिला व ढेले रज-सहित तन वस्त्र हो ।... He, हाथ पग व खपाच काष्ठ व अंगुली या, छड़ अहो ॥६४॥ शलाका-संघात से - ' उसको न. आलेखन करे। ---
१. और न. विलेखन करे घट्टन व भेदन- परिहरे ॥६॥ और ये सब, अन्य जन से भी न करवाये कभी। .
तथा 'अनुमोदन, तजे यह कह रहे गुणिजन सभी ॥६६॥
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