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. उत्तराध्ययन उन पाशो को काट सर्वथा, सदूपायों से करके नष्ट। -
पाश-मुक्त, लघुभूत वायु ज्यो विहरन करता हूँ मैं स्पष्ट ॥४१॥ केशी ने गौतम से पूछा कहा गया है पाग किसे ?
केशी के कहते-कहते ही यो गौतम बोले फिर से ॥४२॥ प्रगाढ राग-द्वेष और फिर स्नेह-पाश है महा भयकर ।
उन्हे काटकर धर्म नीतिपूर्वक विहार करता हूँ मुनिवर ! ॥४३॥ उत्तम प्रज्ञा तेरी गौतम ! दूर किया यह मेरा सशय ।
एक अपर सशय के बारे मे भी वतलाओ करुणामय ! ॥४४॥ अन्त स्थल-सभूत लता है जिसके फल लगते है विषसम। . .
उसे उखाडा कैसे तुमने, बतलानो मेरे को, गौतम | ॥४५॥ उस वल्ली को काट सर्वथा जड से उसे उखाड़ स्वत. ।
यथान्याय सचरता हू, विष भक्षण से हू मुक्त. अतः ॥४६॥ केशी ने गौतम से पूछा, कहा गया है लता किसे ? ..
केशी के कहते-कहते ही. यो बोले गौतम फिर से ॥४७॥ भीम फलोदय भीषण-भव-तृष्णा को मुनिवर ! लता कहा।।
धर्म नीति अनुसार विचरता हूं मैं उसे उखाड़ यहाँ ॥४८॥ उत्तम प्रज्ञा गौतम | तेरी, दूर किया यह मेरा सशय । . ....
एक अपर सशय के बारे में भी बतलायो करुणामय ' ॥४६॥ शरीरस्थ प्रज्वलित हो रही घोर अग्नियाँ गौतम । ऐसे। . ___जो कि मनुज को जला रही है, तुमने उन्हे बुझाया कसे ? ॥५०॥ -महा मेघ से समुत्पन्न निर्झर के उत्तम जल को लेकर। .. '. उन्हे सीचता रहता, मुझे सिक्त वे नही जलाती मुनिवर ! ॥५१॥ केशी ने गौतम से पूछा, कहा गया है अग्नि-किन्हे ? -- __ केशी के ' कहते-कहते ही गौतम ने यो कहा, उन्हे ॥५२।। पावक कहा गया कषाय को नीर कहा श्रुत शील व तप को। --
श्रुत-धारा से आहत, तेज-रहित वे नही जलाती मुझको ॥५३।। उत्तम प्रज्ञा तेरो गौतम | दूर किया मेरा यह संशय। .. एक अपर सशय के बारे मे भी बतलाओ करुणामय ॥५४॥