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अ० २३ : केशी-गोतमीय
जो कि अबाध सिद्धि निर्वाण क्षेम शिव अनाबाघ लोकाग्र । महान के खोजी ही जिसे प्राप्त करते हैं हो एकाग्र ॥ ८३ ॥ लोक-शिखर पर शाश्वत रूप अवस्थित दुरारोह वह स्थान |
भवक्षयी मुनि जिसे प्राप्त कर शोक - मुक्त बनते धीमान ॥ ८४ ॥ मैं गत सशय हुआ, श्रेष्ठ गौतम तेरी प्रज्ञा अपार है ।
सर्व सूत्र - महोदधि ! गत सशय । तेरे को नमस्कार है ॥८५॥ 'घोर पराक्रमधर, केशी यो सशय उपरत होने पर । महा यशस्वी गौतम का सिर से अभिवादन कर सत्वर ॥ ८६ ॥
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शुद्ध भाव से पच - महाव्रत-धर्म किया धारण सुविशिष्ट । पूर्व मार्ग से सुसुखावह पश्चिम पथ में वे हुए प्रविष्ट ॥८७॥
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ज्ञान शील उत्कर्षक केशी गौतमका यह मिलन हुआ ।
महा प्रयोजन वाले अर्थों का निर्णायक सिद्ध हुआ ॥८८॥
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-तुष्ट हुई सब जनता फिर सत्पथ में हुई उपस्थित खुश हो । परिषद द्वारा बहुत प्रशंसित वे केशी - गौतम प्रसन्न हों || ८ ||