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अ० ३६-: जीवाजीव-विभक्ति
अब तृतीय की जघन्यत चौबीस सागरोपम परिमाण । उत्कृष्टायु- स्थिति उसकी पच्चीस सागरोपम पहचान ॥ २३६ ॥
अब चौथे की जघन्यतः - पच्चीस सागरोपम परिमाण - । - 1. उत्कृष्टायु-स्थिति उसकी छब्बीस सागरोपम पहचान || २३७॥
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पचम ग्रेवेयक की जघन्यतेः छब्बीस , उत्कृष्टायु- स्थिति उसकी - फिर सत्ताईस
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छट्ठे ग्रैवेयक की जघन्यतः है सात 1: उत्कृष्टायु स्थिति है अट्ठाईस सागरोपम
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सप्तम ग्रैवेयक की जघन्यत. है आठ बीस उत्कृष्टायु- स्थिति उसकी उनतीस सागरोपम
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सागरोपम है । सागरोपम है ।। २३८ ||
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बीस, “सागर ।
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अष्टम की स्थिति जघन्यतः उनतीस सागरोपम परिमाणः । - ॥ उत्कृष्टायु स्थिति है उसकी तीस सागरोपम पहचान ॥ २४९ ॥ नौवे ग्रैवेयक की जघन्यत है तीस. सागरोपमः ।
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उत्कृष्टायु- स्थितिः उसकी फिर है इकतीस, सागरोपम ॥ २४२ ॥ विजयादिक चारो की जघन्यत है- इकतीस सागर - उत्कृष्टायु स्थिति उन देवो की है तीन तीस सागर ।। २४३॥
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की - वरु ॥२३६॥
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सागर 15 सुन्दर ॥ २४०॥
सागरोपम पहचान
अव प्रजधन्यदेव- अनुत्कृष्ट तैतीस 1: है: सर्वार्थसिद्ध देवो की आयु स्थिति का यह परिमाण. ।। २४४॥
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देवो की आयु-स्थिति जितनी है उतनी ही तू पहचान । - .
जघन्यता फिरी उत्कृष्टतया काय स्थिति है. मतिमान | ॥२४५॥
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जघन्य ' अन्तर्मुहर्त है” उत्कृष्ट अनन्त काल परिमाण । 1" देवों का फिर वही जन्म लेने का "अन्तर हैं यह जान ॥ २४६ ॥
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वर्ण, गध ं फिर रम, स्पर्श, सस्थान अपेक्षा से पहचान
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। उनके फिर यो भेद हजारों होते है समझो मतिमान ॥२४७॥
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संसारी व सिद्ध जीवों' का यहाँ विवेचन किया गया । रूपी श्रोर रूपी अजीवो का भी विवरण दिया गया ॥ २४८ ॥
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जीव-अजीव 'विवेचन सुन, यो उसमे श्रद्धा करे श्रमण ।
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" सभी नयौ से अनुमत, श्रमण-धर्म मे मुनिवर करे रमण ॥ २४६॥
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