Book Title: Dashvaikalika Uttaradhyayana
Author(s): Mangilalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 237
________________ प्रशस्ति [1] प्रखर प्रकाश-पुज से मिथ्याध्वान्त जिन्होने ध्वस्त किया। ___भूले-भटके पथिको को अनुपम पथ एक प्रशस्त दिया // 1 // उन्ही भिक्षु स्वामी के चरण-कमल मे वन्दन शत-शत बार। उनकी दया-दृष्टि से तेरापथ आज अनुपम गुलजार // 2 // भारमल्ल ऋषिराय जीव मघ माणक डालिम कालूराम / भैक्षवगण में एक-एक से बढकर गणपति हुए ललाम // 3 // वर्तमान मे तुलसी-युग अणवत-माध्यम से बोल रहा। . भौतिकता से दबे हुए अध्यात्म पृष्ठ को खोल रहा // 4 // धन्य भाग्य है मेरा तुलसी जैसे गुरुवर को पाकर / जोवन सफल बनाऊँ गुरु-निर्दष्ट पथ को अपनाकर // 5 // तेरापथ की द्विशताब्दी पर मंजुल मुदित "मुकुल" उपहार / / श्री दशवैकालिक पद्यानुवाद गुरुवर करिए स्वीकार // 6 // दो हजार सोलह आषाढीसित सप्तमी हस्त रविवार / हुई सुखद् आमेट शहर मे, मासिक रचना यह तैयार // 7 // . [2] . भिक्षु भारीमाल फिर ऋषिराय पटधर जीत थे। प्रवर मघवा गणी माणक डाल कालु पुनीत थे // 1 // नवम गुरु प्राचार्य तुलसी जैन शासन-अग्रणी। , आज उज्ज्वल कीर्ति जिनकी विश्व मे विस्तृत बनी // 2 // अणुव्रत के मिशन को ले भ्रमण भारत मे किया। - स्वय आ उपराष्ट्रपति ने नथ भेट जिन्हे विण // 3 // तत्कृपया सन्नद्ध शिष्य मुकुल ने गया। हिन्दी पद्याबद्ध सूत्र उत्तराध्ययनको // 4 // दो हजार उन्नीस चैत्र की असित पचमी दिन भृगु वार / ' पूर्ण हुई कृति सतराज सह जीद शहर मे धर्म प्रचार // 5 // सूक्ष्म दृष्टि से पुन निरीक्षण, सशोधन है किया गया। गहराई से मौलिकता पर ध्यान यथोचित दिया गया // 6 // दो हजार इकतीस साल का धन मुनि के सह वर्षावास / अपर भाद्रपद असित द्वादशी पचपदरा मे पूर्ण प्रयास // 7 // निर्वाणोत्सव आ रहा, पचीससोवाँ सार / श्रद्धाञ्जलि मुनि मुकुल की, वीर करो स्वीकार // 8 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 235 236 237