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उत्तराध्ययना
मुनि के प्रश्नो का उत्तर देने मे वह होकर असमर्थ ।
सह परिषद कर जोड़ महा मुनि से यो द्विज ने पूछा अर्थ ॥१३॥ वेदों का मुख क्या है ? यज्ञों का मुख क्या है ? तुम्हो बताओ।
नक्षत्रों का मुख क्या है ? धर्मो का मुख क्या है जतलायो॥१४॥ निज का पर का समद्धार करने मे जो सक्षम है साधो ।
यह सारा संशय है, मेरे प्रश्नों का तुम समाधान दो ॥१५॥ वेदो का मुख अग्निहोत्र है, यज्ञार्थी यज्ञों का मुख है।
नक्षत्रो का मुख हिमकर है, काश्यप-जिन धर्मो का मुख है ।।१६।। ग्रहगण हाथ जोड वन्दन प्रणमन करते रहते शशि-सम्मुख ।
विनय भाव से मनोहरण करते त्यो सभी ऋषभप्रभु-सम्मुख ॥१७॥ जो कि यज्ञबादी हैं वे ब्राह्मण-सपद्-विद्या-अनभिज।
भस्माच्छन्न अग्नि ज्यो, तप-स्वाध्याय-गूढ़ बाहर मे, अज्ञ ॥१८॥ जिसे कुशल पुरुषो द्वारा जग मे है कहा गया ब्राह्मण ।
सदा अग्नि ज्यो पूजित जो है, उसको हम कहते ब्राह्मण ॥१६॥ आने पर आसक्त व जाने पर न करे जो शोक श्रमण ।
आर्य-वचन मे रमण करे जो उसको हम कहते ब्राह्मण ॥२०॥ शिखि से तपा हुआ फिर घिसा हुआ होता ज्यो शुद्ध सुवर्ण ।
राग, दोप, भय-वजित जो है, उसको हम कहते ब्राह्मण ॥२१॥ [मास-रुधिर-अपचय है जिसके, दान्त तपस्वी जो कृश-तन ।
जो सुव्रत है और शान्त है उसको हम कहते ब्राह्मण ।।] बस स्थावर सब जीवो को जो भलीभांति पहचान श्रमण ।
मन वच तन से उन्हे न मारे, उसको हम कहते ब्राह्मण ॥२२॥ क्रोध लोभ भय हास्य वागत हो, न बोलता झुठ वचन ।
विकरण योग सत्यवादी है, उसको हम कहते ब्राह्मण ॥२३॥ जो कि सचित्त अचित्त अल्प या बहुत अदत्त न करे ग्रहण ।
विविध पालता है इस व्रत को उसको हम कहते ब्राह्मण ॥२४॥ मुर, तिर्यञ्च, मनुज-सम्बन्धी मिथुन नही करता सेवन ।
मन वत्र तन से ब्रह्मचर्य-रत को हम कहते हैं ब्राह्मण ।।२।