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उत्तराध्ययन
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पूज्य - वाचना" से यह जीव प्राप्त क्या करता लाभ महा ? कर्म - निर्जरा करता शास्त्र-वाचना से यह लाभ कहा ||५.३ ॥ श्रुत के वाचन से फिर श्रुत की आशातना नही वह करता । अनागातना - शील श्रमण फिर धर्म-तीर्थ अवलम्बन करता || ५४ || धर्म तीर्थ अवलम्वन करता हुआ, महान निर्जरा वाला - होता है फिर महान पर्यवसान यहाँ वह करने वाला || ५५ ॥ भन्ते ! प्रतिप्रश्न करने से जीव प्राप्त क्या है करता ?
उससे सूत्र-अर्थ, फिर तदुभय जनित सशयो को हरता ॥५६॥ और यहाँ फिर करता काक्षा - मोहनीय अघ - कर्म विनाश ।
प्रतिप्रश्न से क्रमश हो जाता आत्मा का पूर्ण विकास || ५७ ॥ परावर्तना" से भगवन् ! प्राणी किस फल को है पाता ?
इससे व्यंजन अथवा व्यजन-लब्धि प्राप्त वह हो जाता ॥ ५८ ॥ अनुपेक्षा” से क्या फल मिलता ? इससे आयुकर्म को तजकर ।
सातों कर्म - प्रकृति के दृढ बन्धन को शिथिल बनाता है नर ॥५६॥
दीर्घकाल स्थिति वालो की फिर हस्व काल स्थिति वह कर देता ।
और तीव्र रस वालो को मदानुभाव वाले कर देता ॥ ६०॥ बहुत प्रदेशी हो तो अल्प प्रदेशी उन्हे बना देता है ।
आयुकर्म का वन्ध कदाचित् होता, न कदाचित् होता है ॥ ६१ ॥ बारम्बार असात वेदनीय का नही उपचय वह करता ।
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दीर्घ अनादि अनन्त चतुर्गति भव-वन झट उल्लघन करता ॥६२॥ धर्मकथा से क्या फल ? भगवन् । इससे कर्म निर्जरा करता । धर्मकथा से जिन - प्रवचन की उज्ज्वल प्रभावना वह करता ॥ ६३ ॥ जिन - प्रवचन को प्रभावना से फिर भविष्य मे जीव यहाँ पर ।
मगलकारी कर्मों का अर्जन करता है अव - मल धो कर ॥६४॥ श्रुतरावना से भगवन् । प्राणी किस फल को करता प्राप्त ?
श्रताराधना से प्रज्ञान- विलय होता फिर दु.ख समाप्त ||६५|| एक अग्र पर मन को स्थापित करने पर क्या मिलता ? प्रभुवर इससे वह फिर चपल चित्त का निरोध कर देता हे सत्वर ॥६६॥
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