Book Title: Dashvaikalika Uttaradhyayana
Author(s): Mangilalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 221
________________ अ० ३६ : जीवाजीव-विभक्ति जघन्य अन्तर्मुहूर्त है उत्कृष्ट अनन्त काल परिमाण । वायुकायिको का फिर वही जन्म लेने का अन्तर जान ।।१२४॥ -वर्ण, गध फिर रस, स्पर्श, सस्थान अपेक्षा से पहचान | उनके फिर यो भेद हजारो होते है समझो मतिमान | ॥ १२५ ॥ अब उदार त्रस जीव यहाँ पर चार प्रकार प्रकीर्तित है । द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय पचेन्द्रिय संज्ञा निर्णित है ॥ १२६ ॥ द्वीन्द्रिय प्राणी दो प्रकार से यहाँ कथित है तू पहचान । अपर्याप्त पर्याप्त तथा फिर उनके भेद सुनो मतिमान | ॥ १२७ ॥ कृमि, सोमगल, अलस, मातृवाहक नामक प्राणी पहचान । वासीमुख फिर सीप, शख फिर शखनकादिक है मतिमान ! || १२८ ॥ फिर पल्लोय, अणुल्लक, कोडी नामो से वे है प्रख्यात । , जोक और जालक, चन्दनिया, आदिक सज्ञा है प्रख्यात ॥ १२६॥ इत्यादिक ये द्वीन्द्रिय प्राणी-गण होते नाना विध है | वे सर्वत्र नही होते हैं, लोक एक भाग स्थित हैं ॥१३०॥ - सतत प्रवाह अपेक्षा से वे कहे अनादि अनन्त सुजान 1 स्थिति सापेक्षतया फिर उन्हे कहा है सादि सान्त पहचान ॥ १३१ ॥ द्वीन्द्रिय जोवो की जघन्य - आयु- स्थिति अन्तर्मुहूर्त मान । उत्कृष्टायु- स्थिति उन जीवो की है वारह वर्ष - प्रमाण ।। १३२ ।। द्वीन्द्रिय जीवो की काय स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त मान । सतत जन्म है वही अत संख्यात काल उत्कृष्ट विधान ॥१३३॥ जघन्य अन्तर्मुहूर्त है उत्कृष्ट - अनन्त काल परिमाण । द्वीन्द्रिय जीवो का फिर वही जन्म लेने का श्रन्तर जान || १३४ || T २०३ वर्ण, गघ फिर रस, स्पर्श, सस्थान अपेक्षा से पहचान । उनके फिर यो भेद हजारो होते हैं समभो मतिमान | ॥१३५॥ त्रीन्द्रिय प्राणी दो प्रकार के यहाँ कथित हैं तू पहचान । अपर्याप्त पर्याप्त तथा फिर अव उनके सुन भेद सुजान ॥ १३६ ॥ चोटी, खटमल मकडी, दीमक, कुश्रु, तृणाहारक पहचान । काष्ठाहारक, मालक, पत्राहारक सज्ञा है मतिमान ! || १३७ ||

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