Book Title: Dashvaikalika Uttaradhyayana
Author(s): Mangilalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 219
________________ २०१ अ० ३६ · जीवाजीव-विभक्ति अब साधारण शरीर वाले जोव बहुत-विध वर्णित हैं । आलू, मूली, अदरख आदिक नामों से जो सुविदित है | ||६|| 1 हिरली, सिरिली, सिस्सिरिली, जावईकन्द, कदली सुजान ! केद-कदली-कन्द प्याज, लहसुन, फिर कुस्तुम्बुक पहचान ॥६७॥ लोही और कुहुक फिर कृष्ण तथा फिर वज्रकद पहचान । सूरणकन्द आदि साधारण - हरितकाय के भेद प्रधान ॥ ६८ ॥ तथा अश्वकर्णी व सिंहकर्णी व मुसुढी है ज्ञातव्य । और हरिद्रादिक साधारण शरीर है ये, समभो भव्य ! || || सूक्ष्म वनस्पति अविविध होने से फिर एक भेद मित है । सर्व लोक व्याप्त व बादर लोक एक देश स्थित है ॥ १०० ॥ सतत प्रवाह अपेक्षा से वे कहे अनादि अनन्त सुजान 1 स्थिति सापेक्षतया वे हरित जीव है सादि सान्त पहचान ।। १०१ । हरित प्राणियो की जघन्य आयु- स्थिति अन्तर्मुहूर्त मान । उत्कृष्टायु -स्थिति है उनकी दश हजार हायन परिमाण || १०२ || पनक प्राणियो कीं काय स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त मान । सतत जन्म है वही अत उत्कृष्ट अनन्त कालं परिमाण ॥१०३॥ जघन्य अन्तर्मुहूर्त है उत्कृष्ट असंख्य काल परिमाण । पनक प्राणियो का फिर वही जन्म लेने का अन्तर जान ॥ १०४ ॥ वर्ण, गंध फिर रस, स्पर्श, सस्थान अपेक्षा से पहचान | उनके फिर यो भेद हजारो होते है समझो मतिमान | ॥ १०५ ॥ तीन प्रकार स्थावरो का है यह संक्षिप्ततया वर्णन | त्रिविधत्रसो का अब में क्रमश यहाँ करूँगा सुनिरूपण ॥१०६ ॥ तेजस् वायु तथा उदार त्रमकाय ज्ञेय ये तीन विभेद । अब मुझसे तुम सुनो यहाँ पर इन तीनो के बहुत प्रभेद ।। १०७ ॥ तेजस् कायिक दो प्रकार है सूक्ष्म और वादर पहचान । फिर इनके दो-दो विभेद है अपर्याप्त पर्याप्त महान ॥ १०८ ॥ अब बादर पर्याप्त अग्नि के जीव अनेक प्रकार कहे । मुर्मुर, अग्नि, अर्चि, ज्वाला, अगार भेद फिर यहाँ रहे ||१०६ ॥

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