________________
अ० ३६. जीवाजीव- विभक्ति
हैं ससारी जीव यहाँ पर दो प्रकार से कथित सुजान । त्रस, स्थावर दो भेद व स्थावर के है तीन भेद पहचान ॥ ६८ ॥ पृथ्वी, पानी और वनस्पति मूल भेद स्थावर के तीन । अब उत्तर भेदो को मुझसे सुनो शिष्य । हो कर तल्लीन || ६ || पृथ्वी - जीवो के विभेद दो, सूक्ष्म और बादर पहचान । इनके दो-दो भेद कहे फिर अपर्याप्त, पर्याप्त महान ॥ ७० ॥
1
अब बादर पर्याप्त भूमि-जीवो के दो विभेद आख्यात | पहला मृदु व कठोर दूसरा, मृदु के भेद कहे फिर सात ॥ ७१ ॥ कृष्ण नील फिर रक्त पीत फिर श्वेत पांडु फिर पनक कही । कठोर पृथ्वी के जीवो के है छत्तीस प्रभेद सही ॥७२॥ पृथ्वी, उपल, शर्करा, शिला, बालुका, लवण व नौनी जान । लोहा, रागा, तावा, शीशा, रजत, सुवर्ण, वज्र पहचान || ७३ ।। मन शिला, हिंगुल, प्रवाल, फिर सस्यक, अजन है हरिताल । अभ्रकं पटल, अभ्र बालुक, अब सुन बादर मणियो के हाल ॥७४॥ गोमेदक फिर रुचक अंकमणि स्फटिक व लोहिताक्ष पहचान ।
मरकत, मसारगंल्ल रत्न, भुज मोचक, इन्द्रनील मणि जान ||७५|| चन्दन, गेरुक, हसगर्भ मणि, पुलक व सौगन्धिक वोधव्य
चन्द्रप्रभ, वैडूर्य व सूर्यकान्त जलकान्त भेद श्रोतव्य ॥ ७६ ॥ कठोर पृथ्वी के जीवो के ये छत्तीस भेद आख्यात |
f
सूक्ष्म भूमि-प्राणी अविविध होने से एक भेद प्रख्यात ॥७७॥ सर्व लोक मे व्याप्त सूक्ष्म, फिर लोक एक भाग स्थित बादर । अब मै इनका काल - विभागं चतुर्विध यहाँ, कहूँगा स्फुटतर ॥७८॥
'
१εT
3
सतत प्रवाह अपेक्षा से वे यहाँ अनादि अनन्त कहे ।
स्थिति सापेक्षतया पृथ्वी के सादि सान्त सब जीव रहे ॥७६॥
1
उन जीवो की जघन्यत. आयुस्थिति अन्तर्मुहूर्त मान । उत्कृष्टायु स्थिति उनकी बाईस हजार वर्ष परिमाण ||८०|| पृथ्वी जीवो की काय स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त मान । सतत जन्म है वही अत. उत्कृष्ट असंख्य काल परिमाण ॥८१॥
1