Book Title: Dashvaikalika Uttaradhyayana
Author(s): Mangilalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 218
________________ २०० उत्तराध्ययन जघन्य अन्तर्मुहर्त है उत्कृष्ट अनन्त काल परिमाण । पृथ्वी जीवो का फिर वही जन्म लेने का अन्तर जान ॥२॥ वर्ण, गध फिर रस, स्पर्श संस्थान अपेक्षा से पहचान । उनके फिर यो भेद हजारो होते हैं समझो मतिमान ! ॥८३॥ जल जीवों के दो विभेद है, सूक्ष्म और वादर पहचान । फिर इनके दो-दो प्रभेद हैं अपर्याप्त पर्याप्त महान ८४।। अप्कायिक बादर पर्याप्त जीव फिर पाँच प्रकार कथित हैं। शुद्धोदक फिर हरतनु और कुहासा फिर हिम-सलिल प्रथित हैं ॥८॥ सूक्ष्म सलिल प्राणी अविविध होने से एक भेद मित है। सर्व लोक में व्याप्त व वादर लोक एक भाग स्थित हैं।॥८६॥ सतत प्रवाह-अपेक्षा से वे जीव अनादि अनन्त रहे। स्थिति सापेक्षतया पानी के जीव सादि फिर सान्त कहे ॥८७॥ उन जीवो की जघन्यतः आयु स्थिति अन्तर्मुहूर्त मान । उत्कृप्टायु-स्थिति है उनकी सात हजार वर्ष परिमाण ॥८॥ जल के जीवो की काय-स्थिति जघन्य अन्तर्मुहुर्त मान ।। ___ सतत जन्म है वही अतः उत्कृष्ट असंख्य काल परिमाण ।।६।। जघन्य अन्तर्मुहूर्त है उत्कृष्ट अनन्त काल परिमाण । ' पानी जीवो का फिर पानी मे आने का अन्तर जान ॥१०॥ वर्ण, गध फिर रस, स्पर्श संस्थान अपेक्षा से पहचान । उनके फिर यों भेद हजारो होते हैं, समझो मतिमान ! ॥६॥ दो प्रकार के कहे वनस्पति जीव, सूक्ष्म वादर पहचान । फिर उनके दो-दो प्रभेद हैं अपर्याप्त पर्याप्त महान ॥२॥ अब वादर पर्याप्त हरित जीवों के होते है दो भेद। पहला साधारण-शरीर है फिर प्रत्येक-शरीर प्रभेद ॥१३॥ अव प्रत्येक-शरीर हरित प्राणी नाना विध हैं आख्यात । वृक्ष, गुच्छ फिर गुल्म, लता, वल्ली, तृण भेद यहाँ प्रख्यात ।।६४॥ लता-वलय, पर्वज व कुहण, जलल्ह, हरित, श्रीपधि-तण, जान । __ ये प्रत्येक-शरीर हरित कायिक हैं जीव विविध, पहचान ॥६५॥

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