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उत्तराध्ययन वर्ण, गंध फिर रस, स्पर्श, सस्थान अपेक्षा से पहचान ।
उनके फिर यो भेद हजारो होते है समझो मतिमान ! ॥१६४॥ मनुष्य के दो भेद कहे है, वे अब मुझसे सुन मतिमान ! ___ समूछिम फिर गर्भज मानव की सज्ञा से तू पहचान ।।१६।। गर्भज मानव के फिर तीन विभेद कहे है यहाँ सुजान।
अकर्मभूमिक और कर्मभूमिक फिर अन्तर्वीपक जान ||१९६।। पन्द्रह, तीस तथा फिर अट्ठाईस भेद क्रमश. जानो। ।
इन तीनो के इतने होते है विभेद तुम पहचानो ॥१९७॥ गर्भज के जितने ही समूछिम के होते भेद सुजान। .
सभी लोक के एक भाग में ही वे रहते हैं मतिमान ! ॥१९८॥ सतत प्रवाह अपेक्षा से वे सभी अनादि अनन्त रहे। . __ स्थिति सापेक्षतया वे सारे सादि सान्त-फिर यहाँ कहे ॥१९६॥ फिर उनकी आयु-स्थिति जघन्यत: है अन्तर्मुहूर्त मान । ___ उत्कृष्टायु-स्थिति उनकी पहचानो तीन पल्य उपमान ॥२०॥ जघन्यत अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट मनुज काय-स्थिति जान। .
तीन पल्य फिर पृथक्त्व कोटि पूर्व ज्यादा समझो मतिमान !॥२०१॥ यह काय-स्थिति कही तथा फिर अब उनका अन्तर पहचान ।
जघन्य अन्तर्मुहूर्त है उत्कृष्ट अनन्त काल परिमाण ।।२०२।। वर्ण, गध फिर रस, स्पर्श, सस्थान अपेक्षा से पहचान ।
उनके फिर यो भेद हजारों होते हैं समझो मतिमान !२०३॥ अव देवो के चार भेद होते है मुझ से सुन मतिमान ! . भवनाधिप, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक भेद प्रधान ॥२०४॥ कहे भवनवासी दशधा, फिर व्यन्तर के हैं पाठ प्रकार ।
पाँच भेद ज्योतिष्क सुरो के, वैमानिक के उभय प्रकार ॥२०॥ असुर नाग व सुपर्ण तथा चिद्युत्कुमार फिर अग्निकुमार । द्वीप, उदधि, दिग, वायु वस्तनितकुमार-भवनपति देव विचार ॥२०६॥ पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर फिर है किंपुरुष, प्रधान ।
और महोरग फिर गन्धर्व, अष्टधा यो व्यन्तर पहचान ॥२०७॥