Book Title: Dashvaikalika Uttaradhyayana
Author(s): Mangilalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 215
________________ अ०३६ : जीवाजीव-विभक्ति १६७ जो कि स्पर्श से स्निग्ध पौदगलिक होता स्कध, यहाँ पहचान । वह सस्थान व वर्ण, गध, रस से भाजित होता मतिमान ॥४०॥ __ जो कि स्पर्श से रूक्ष पौद्गलिक होता स्कध, यहाँ पहचान । वह सस्थान व वर्ण, गध, रस से भाजित होता मतिमान' ॥४१॥ परिमडल सस्थान युक्त पौद्गलिक स्कध होता मतिमान । वर्ण, गध, रस और स्पर्श से वह भाजित होता, पहचान ॥४२॥ जो वर्तुल सस्थान युक्त होता है पुद्गल-स्कध, सुजान । वर्ण, गध, रस और स्पर्श से वह भाजित होता, पहचान ॥४३॥ जो त्रिकोण सस्थान युक्त होता है पुद्गल-स्कध, सुजान । - वर्ण, गध, रस और स्पर्श से वह भाजित होता, पहचान ॥४४॥ चतुष्कोण सस्थानवान जो होता पुद्गल-स्कन्ध, सुजान | वर्ण, गध, रस और स्पर्श से वह भाजित होता, पहचान ॥४५॥ जो आयत-सस्थानवान होता है पुद्गल-स्कध, सुजान । वर्ण, गध, रस और स्पर्श से वह भाजित होता, पहचान ॥४६॥ यह सक्षिप्त अजीव-विभाग कहा है मैंने हे मतिमान ! अव क्रमश मै जीव-विभाग कहूँगा, शिष्य ! सुनो धर ध्यान ॥४७॥ दो प्रकार के जीव कहे हैं ससारी व सिद्ध भगवान । __- सिद्धो के है भेद अनेकों उन्हे कहूंगा सुनो सुजान । ॥४८॥ है स्त्रीलिंग सिद्ध, पुल्लिग, नपुसकलिंग सिद्ध पहचान । और स्वलिंग व अन्यलिंग गहलिग सिद्ध, ये भेद महान ॥४६॥ फिर उत्कृष्ट, जघन्य व मध्यम कद मे, जलाशयो मे सिद्ध । अध व तिर्यग्, ऊर्ध्व लोक मे और उदधि मे होते सिद्ध ॥५०॥ एक समय मे क्लीवलिंग दश और बीस नारियॉ-प्रधान । __ प्रवर एक सौ आठ पुरुष, हो सकते सिद्ध, यहाँ पहचान ।।५१॥ गृहीलिग मे चार, अन्यलिंगी दश, स्वलिग मे फिर जान । __ अष्टोत्तर शत एक समय मे हो सकते हैं सिद्ध महान ॥५२॥ जघन्य कद मे चार व मध्यम कद मे अष्टोत्तर शत मान । । उत्कृष्टाऽवगाहना मे दो युगपद् होते सिद्ध सुजान । ॥५३॥

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