Book Title: Dashvaikalika Uttaradhyayana
Author(s): Mangilalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 213
________________ ___ अ० ३६ . जीवाजीव-विभक्ति १६५ सभी प्रवाह-अपेक्षा से वे यहाँ अनादि अनन्त कहे। स्थिति सापेक्षतया वे सारे सादि सान्त फिर यहाँ रहे ॥१२॥ जघन्य एक समय की फिर, उत्कृष्ट असख्य-काल परिमाण । रूपी अजीव द्रव्यो की यह स्थिति वर्णित है, तू पहचान ।।१३।। जघन्य एक समय का फिर उत्कृष्ट अनन्त काल-परिमाण । ___रूपी अजीव द्रव्यो का यह अन्तर कहा गया मतिमान ॥१४॥ वर्ण गध फिर रस स्पर्श संस्थान अपेक्षा से पहचान । पाँच तरह से उन सबका परिवर्तन होता है मतिमान | ॥१५॥ वर्ण अपेक्षा से उनकी परिणति होती फिर पाँच प्रकार । कृष्ण, नील, लोहित, हारिद्र व शुक्ल नाम से है साकार ॥१६॥ दो प्रकार से परिणति होती गंध अपेक्षा से फिर उनकी।। ' सुरभि गध या फिर दुर्गंध नाम से यहाँ ख्याति है जिनकी ॥१७॥ रस-सापेक्षतया फिर उनकी परिणति पाँच प्रकार कथित है। तिक्त कटुक व कसला खट्टा मधुर नाम से जो कि प्रथित है ।।१८।। स्पर्श अपेक्षा से फिर उनकी परिणति होती आठ प्रकार । कर्कश प्रथम तत. मृदु फिर गुरु, लघु प्रभेद चौथा साकार ॥१६॥ तत शीत फिर उष्ण तथा फिर स्निग्ध, रूक्ष फिर हैं आख्यात । सभी स्पर्श से ये परिणत हैं पुद्गल सज्ञा से प्रख्यात ॥२०॥ सस्थानापेक्षा से उनकी परिणति होती पाँच प्रकार। __ है परिमंडल, वृत्त, त्रिकोण, चतुष्क और आयत आकार ॥२१॥ जो कि वर्ण से कृष्ण, पौद्गलिक होता स्कध, यहाँ पहचान । वह संस्थान, गध, रस और स्पर्श से होता भाज्य, सुजान ! ॥२२॥ जो कि वर्ण से नील, पौदगलिक होता स्कध, यहाँ पहचान । वह सस्थान, गध, रस और स्पर्श से होता भाज्य, सुजान !॥२३॥ जो कि वर्ण से रक्त, पोदगलिक होता स्कध, यहाँ पहचान । वह सस्थान, गध, रस और स्पर्श से होता भाज्य, सुजान ॥२४॥ जो कि वर्ण से पीत, पौदगलिक होता स्कव, यहाँ पहचान । वह सस्थान, गध, रस और स्पर्ग से होता भाज्य, सुजान ॥२५॥

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