Book Title: Dashvaikalika Uttaradhyayana
Author(s): Mangilalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 209
________________ अ० ३४ · लेश्या 'पद्मोत्कृष्टाऽवधि से समयाधिक जघन्यत. शुक्ल स्थिति है । अतर्मुहूर्त ज्यादा तीन तीस सागर उत्कृष्ट अवधि है || ५५ || -कृष्ण नील कापोत तीन ये अधर्म लेश्याएँ पहचान । इन तीनों से दुर्गति मे जाता है जीव, समझ मतिमान ॥ ५६ ॥ -तेजस पद्म शुक्ल ये तीनो कही धर्म लेश्याए अत्र । इन तीनों से जीव सुगति में जाता, सधता अत्र - परत्र ॥५७॥ प्रथम समय मे परिणत इन सब लेश्यायो मे कोई प्राणी । 1. नही दूसरे भव में पैदा होता है यह प्रभु की वाणी ॥ ५८ ॥ । ; - ३ अतर्मुहूर्त जाने पर अन्तर्मुहूर्त चरम समय मे परिणत इन सब लेश्याओ में कोई प्राणी । नही दूसरे भव मे पैदा हो सकता, यह प्रभु की वाणी ॥ ५६ ॥ रहता शेष । श्याओ की इस स्थिति में पर भव में जाते जीव अशेष ॥ ६०॥ इसीलिए इन लेश्याओं के अनुभागों को समझ सुजान । अप्रशस्त तज प्रशस्त को स्वीकार करे जो मनुज महान ॥ ६१ ॥ t ܝ १६१

Loading...

Page Navigation
1 ... 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237