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उत्तराध्ययन कायोत्सर्ग पूर्ण कर तदनन्तर गुरु को वन्दना करे।
दिवस-सम्बन्धी अतिचारो की क्रमशः पालोचना करे ॥४०॥. प्रतिक्रमण से शल्य-रहित हो फिर गरु को वन्दना करे ।
ततः सर्व दु.खो को हरने वाला कायोत्सर्ग करे ॥४१।।. कायोत्सर्ग पूर्ण कर फिर गुरु को वन्दना करे धृतिधर। ।
फिर स्तुति-मगल करके प्रतिलेखना काल की करे प्रवर ॥४२॥ प्रथम प्रहर मे मुनि स्वाध्याय करे व दूसरे मे फिर ध्यान । ,
प्रहर तीसरे मे निद्रा, स्वाध्याय तूर्य मे करे सुजान ॥४३॥ तत. चतुर्थ प्रहर मे प्रतिलेखना काल की कर गुणवान ।
___ असंयतो को नही जगाता हुआ करे स्वाध्याय महान ॥४४॥ तूर्य प्रहर के तूर्य भाग मे मुनि स्वाध्याय विरत होकर।
गुरु को कर वन्दना, काल की प्रतिलेखना करे यतिवर ॥४५॥ सब दुखहारी कायोत्सर्ग समय होने पर साधक वर्ग। ..
करे सर्व दुखो को हरनेवाला, सुखकर कायोत्सर्ग ॥४६॥५ निशि सम्बन्धी अतिचारो का क्रमशः चिन्तन करे गुणी। - -
'दर्शन ज्ञान चरण तप के अतिचारों को फिर हरे मुनी ॥४७॥ कायोत्सर्ग पूर्ण कर तदनन्तर गुरु को वन्दना करे । - फिर वह रात्रिक अतिचारों की क्रमश. आलोचना करे ॥४८॥ प्रतिक्रमण कर शल्य-रहित हो फिर गुरु को वन्दना करे। ' तत. सर्व दुखो को हरने वाला कायोत्सर्ग करे ॥४६॥ तप कौन सा करूं मैं यो ध्यान-स्थित चिंतन करे प्रवर। :
कायोत्सर्ग पूर्ण कर फिर गुरु को वन्दना करे यतिवर ॥५०॥ कायोत्सर्ग पूर्ण कर गुरु को करे वन्दना तदनन्तर । .
तप को कर स्वीकार तत सिद्धो की स्तवना करे प्रवर ॥५१॥ यह सक्षिप्त कही है मैंने सामाचारी सुखद सुजान ।
इसे धार कर जीव बहुत भवसागर को तिर गए महान ॥५२॥