________________
१४६
समारंभ आरंभ और संरम्भ प्रवर्तमान तन का ।
करे निवर्तन यतनाशील, रखे नित ध्यान श्रमणपन का ||२५||
उत्तराध्ययन
चरण-प्रवर्तन हित ये पांचो कही समितियां श्रमण प्रवीण ।
-
सर्व अशुभ विषयो से निर्वर्तन-हित कही गुप्तियाँ तीन ॥ २६ ॥
जो इन प्रवचनमाताओ का सम्यक् पालन करता है ।
वह पडित संसार-चक्र से शीघ्र मुक्त हो जाता है ||२७||