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उत्तराध्ययन
उत्तम प्रज्ञा तेरी गौतम । दूर किया यह मेरा संशय ।
एक अपर सशय के बारे में भी बतलायो करुणामय ! ॥६६॥ महौष अर्णव मे द्रत गति से नाव जा रही है मझधार ।
उसमे चढे हुए तुम गौतम ! कैसे पहुचोगे उस पार ?॥७०॥ जो छिद्रो वाली नौका, वह कभी न जा पाती उस पार। .
लेकिन छिद्रविहीन नाव निविघ्न चली जाती उस पार ।।७१॥ केगी ने गौतम से पूछा, कहा गया है नाव किसे ? __केशी के कहते-कहते ही यो गौतम वोले फिर से ॥७२।। शरीर को नौका व जीव को नाविक कहा गया मतिमान ।
और विश्व को कहा उदधि, तर जाते उसे मुमुक्षु महान ॥७३॥ उत्तम प्रज्ञा तेरी गौतम | दूर किया मेरा यह संशय । ___एक अपर संशय के बारे मे भी बतलाओ करुणामय ! ॥७४॥ अन्ध बनाने वाले तम में, बहुत लोग कर रहे निवास ।
सारे जग में उन जीवों के लिये करेगा कौन प्रकाश ?॥७॥ -समस्त लोक-प्रकाशक एक उगा है विमल भानु नभ में।
सव जीवों के लिये करेगा वह प्रकाश पूरे जग में ॥७६।। केशी ने गौतम से पूछा कहा गया है भानु किसे ?
केशी के कहते-कहते ही गौतम यो बोले फिर से ॥७७॥ क्षीण हो चुका भव जिसका उद्गत जिन-भास्कर जो सर्वज्ञ। '
सर्वलोक के जीवों के हित वही प्रकाश करेगा प्रज्ञ ॥७॥ उत्तम प्रज्ञा तेरी गौतम दूर किया यह मेरा संशय।।
एक अपर सशय के बारे में भी बतलायो करुणामय | ॥७९॥ शारीरिक व मानसिक दुख पीड़ित जीवो के लिये प्रवर। - -
अनावाध शिव क्षेम स्थल, तुम किसे मानते हो मुनिवर ॥८॥ लोक-शिखर पर शाश्वत एक स्थान है दुरारोह जानो। ___ जहाँ नही है जरा-मृत्यु फिर व्याधि-वेदना, पहचानो ।।८१॥ 'केशी ने गौतम से पूछा, कहा गया है स्थान किसे ? - केशी के कहते-कहते ही गौतम यो बोले फिर से ॥२॥