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०५. पिण्डेषणा (प्र० उ०) अशन-पानक और नाना -खाद्य-स्वाध कही अगर। .. . .. . वनीपक-हित है बना, यो जानकर या श्रवणकर ।।५१।। संयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक है सही।
कहे देती हुई से-मैं इसे ले सकता नही ॥५२॥ अशन-पानक और नाना खाद्य-स्वाद्य कही अगर। . .. ... श्रमण-हित वह है बना, यो जानकर या श्रवणकर ।।५३।। सयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक है सही।
., कहे देती हुई से-मैं इसे ले. सकता नहीं ॥५४॥ पूर्तिकर्म' व क्रीतकृत, उद्दिष्ट, अभिहत अशन को।
. . मिश्र, अध्यवतर' तथा छोडे -अशन प्रामित्य' को ॥५५।। किसलिए किसने किया उत्पत्ति कारण पूछकर । , शुद्ध नि.शकित श्रवण कर ले उसे सयत-प्रवर ।।५६।। अशन-पानक तथा नाना खाद्य-स्वाद्य कही यदा।
- - पुष्प, वीज व हरित-से वह मिश्र बन जाए कदा ॥५७।। सयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक है सही।
.. कहे देती हुई से-मैं इसे ले सकता नही ॥५८।। अशन-पानक और नाना खाद्य-स्वाद्य कही यदा । । पनक या उत्तिग पानी पर रखा हो एकदा ॥५६।। सयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक है सही । ' ' कहे देती हुई "से-मैं इसे ले सकता नही ॥६०॥ प्रशन-पानक और नाना खाद्य-स्वाद्य कही यदा।।
___ अग्नि पर रक्खा व अग्नि-स्पर्श कर जो दे कदा ॥६१॥ सयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक है सही।।
__ कहे देती हुई से-मैं इसे ले सकता नहीं ।।६२।। चल्हे मे लकडी सरकाकर या निकालकर भोजन दे।
। ''ज्वलित-प्रज्वलित करे अग्नि को अथवा निर्वापित कर दे।
, १ निर्दोष आहार में प्राधाकर्मी आहार का सयोग होना। २ अपने लिए बनाये हुए आहार मे साधु के लिए कुछ अधिक डाल देना । ३ किसी से उधार लेकर साधु को देना।